दिव्य सन्देश
उत्तरेण एव गायत्रीममृतेधि वि चक्रमे , साम्ना ये साम सम्विदुरजस्तद ददृशे क्व !
जो साधक प्राण (गय) से उत्तर (आगे) स्थित अमृत-प्रवाह को प्राप्त करके गायत्री महाविद्या में गतिशील होते हैं , जो साम (आत्मतत्व) से, साम (परमात्मतत्त्व) को जानते हैं, वे ही जानते हैं कि अज (अजन्मा – परमात्मा का) कहाँ प्रत्यक्ष (साक्षात्कार) होता है !!
– अथर्ववेद १०.८.४१