वैदिक चिकित्सा विज्ञान

वेद  ज्ञान  के  अक्षय  स्रोत हैं । वेदों में निहित ज्ञान सम्पदा अनंत व अद्भुत है । वेदों की ऋचाओं में निहित ज्ञान अनंत है तथा उनकी शिक्षाओं में मानव-मात्र ही नहीं वरन् समस्त प्राणीजगत की कल्याण की भावना सन्निहित है । वैदिक ऋचाओं में सन्निहित ज्ञान देश व कालातीत हैं, इनके मूल तत्व अपरिवर्तनीय हैं । यह आधुनिक परिस्थितियों में भी पूर्णतः विज्ञान-सम्मत है ।

प्रस्तुत लेख का मूल उद्देश्य वेद में निहित चिकित्सा सम्बंधी उन तथ्यों की जानकारी प्रदान करना है जो आज भी वैज्ञानिकों के लिये आकाश्कुसुम ही हैं । वेद में वर्णित तथ्य निश्चित ही शोध के विषय हैं । प्राचीन वैदिक शास्त्र ऐसे अनेक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हमारी ऋषि-प्रणीत वैदिक संस्कृति व प्रणाली अत्यधिक उन्नत, सुदृढ व व्यवस्थित थी ।

वैसे तो भारतीय परम्परा चिकित्साशास्त्र में सदैव अग्रणी रहा है और आयुर्वेद, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथ इसके उदाहरण हैं । परंतु इन ग्रंथों के अलावा भी वेदों में अनेक स्थानों पर चिकित्सा-विज्ञान के क्लोनिंग आदि जैसे अद्भुत प्रयोगों की चर्चा की गयी है ।

यहाँ पर इन तथ्यों के सम्बंध में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही है जिससे कम-से-कम यह अनुमान तो अवश्य लगाया जा सकता है कि वैदिक ऋषियों को इसकी सम्पूर्ण जानकारी थी ।

ऋग्वेद 1:161:7 , ऋषि : दीर्घतमा औचथ्य,

निश्चर्मणो गामरिणीत धीतिभिर्या जरन्ता युवशा ताकृणोतन ।

सौधन्वना अश्वादश्वमतक्षत युक्त्वा रथमुप देवाँ अयातन ॥

हे सुधन्वा पुत्रों ! आपके श्रेष्ठ प्रयासों  से चर्मरहित गौ को पुनर्जीवन मिला । अतिवृद्ध माता-पिता को आपने तरुण बनाया । एक घोडे से दूसरे घोडे को उत्पन्न करके उनको रथ में जोतकर देवों के समीप उपस्थित हुये ।

ऋग्वेद 1:110:8 , ऋषि : कुत्स आंगिरस,

निश्चर्मणो ऋभवो गामपिंशत सं वत्सेनासृजता मातरं पुनः ।

सौधन्वनासः स्वपस्यया नरो जिव्री युवाना पितराकृणोतन ॥

हे ऋभुदेवों । आपने जिसके चर्म ही शेष रह गये थे, ऐसी कृषकाय (दुर्बल शरीर वाली) गौ को फिर से सुंदर हृष्ट-पुष्ट बना दिया , तत्पश्चात गौमाता को बछडे  से संयुक्त किया । हे सुधन्वा पुत्र वीरों ! आपने अपने सत्प्रयासों से अति वृद्ध माता-पिता को भी युवा बना दिया ।

ऋग्वेद 1:111:1, ऋषि : कुत्स आंगिरस ,

तक्षभथं सुवृतं विद्मनापसस्तक्षन्हरी इन्द्रवहा वृषण्वसु ।

तक्षन्पितृभ्यामृभवो युवद्वयस्तक्षन्वत्साय मातरं सचाभुवं ॥

कुशल विज्ञानी ऋभुदेवों ने उत्तम रथ को अच्छी प्रकार से तैयार किया । इंद्रदेव के रथवाहक घोडे भी भली प्रकार से प्रशिक्षित किये । वृद्ध माता-पिता को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देकर तरुणोचित उत्साह प्रदान किया …

ऋग्वेद 1:120:4, ऋषि : मेधातिथि काण्व,

युवाना पितरा पुनः सत्यमंत्रा ऋजुयवः । ऋभवो विष्टयक्रत ॥

अमोघ मंत्र-सामर्थ्य से युक्त, सर्वत्र व्याप्त रहनेवाले ऋभुदेवों ने माता-पिता में स्नेहभाव संचरित कर उन्हें युवावस्था प्रदान किया ।

ऋग्वेद 4:33:3, 4,  ऋषि : वामदेव गौतम,

पुनर्ये चक्रुः पितरा युवाना सना यूपेव जरणा शयाना ।

ते वाजो विभ्वाँ ऋभुरिन्द्रवन्तो मधुप्सरसो नो Sवन्तु यज्ञम् ॥3॥

उन ऋभुओं ने यूप के सदृश जीर्ण होकर लेटे हुये अपने माता-पिता को सदैव के लिये युवा बना दिया । ….  

यत्संवत्समृभवो गामरक्षन्यत्संवत्समृभवो मा अपिंशन  ।

यत्संवत्समभरन्भासो अस्यास्ताभिः शमीभिरमृतत्वमाशुः ॥

उन ऋभुओं ने एक वर्ष पर्यंत मरणासन्न गाय का पालन किया । उन्होंने एक वर्ष पर्यंत उसे अवयवों से युक्त किया तथा उसे सौंदर्य प्रदान किया । एक वर्ष पर्यंत उन्होंने उसमें तेज स्थापित किया । इन सम्पूर्ण कार्यों के द्वारा उन्होंने अमरत्व को प्राप्त किया ।

ऋग्वेद 4:35:5,  ऋषि :वामदेव गौतम,

शच्याकर्त पितरा युवाना शच्याकर्त चमसं देवपानम् । ….

हे ऋभुओं ! आपने अपने कर्म-कौशल के द्वारा अपने मात-पिता को युवा बनाया तथा चमस को देवताओं के पीने योग्य बनाया । ….

ऋग्वेद 3:60:2 , ऋषि : विश्वामित्र गाथिन ,

याभिः शचीभिश्चमसाँ अपिंशत यया धिया गामरिणीत चर्मणः ।

येन हरि मनसा निरतक्षत तेन देवत्वमृभवः समानश ॥

हे ऋभुगणों ! जिस सामर्थ्य से आपने चमसों का सुंदर विभाजन किया, जिस बुद्धि से आपने गौ को चर्म से संयुक्त किया, जिस मानस से आपने इंद्र के अश्वों को समर्थ बनाया; उन्हीं के कारण आपने देवत्व प्राप्त किया ।     

इसी प्रकार 4:34, 4:36, 7:48, 10:176, आदि अनेक सूक्तों मे ऋभुगणों के कुशल विज्ञानी व भारतीय चिकित्सा पद्धति के समुन्नत होने के अनेक प्रमाण प्राप्त होते हैं ।

ऋभुगणों के इन कार्यों का किसी एक ही ऋषि ने नहीं बल्कि सात विभिन्न ऋषियों –मेधातिथी काण्व, कुत्स आंगिरस, औचथ्य दीर्घतमस, विश्वामित्र गाथिन, वामदेव गौतम, वसिष्ठ मैत्रावरुणि, श्रुणू आर्भव- ने भी वर्णन किया है । ये सभी सात ऋषि अलग-अलग समयों के हैं, जिससे यह परिलक्षित होता है कि ऋभुगनण अपने वैज्ञानिक प्रतिपादनों के कारण अत्यंत प्रसिद्ध थे ।

नोट :- निरुक्त 11.16 के अनुसार सूर्य रश्मियों को भी ऋभु कहा जाता है । पौराणिक संदर्भों के अनुसार वे मनुष्य थे, जो श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर देव बने । सूर्य से विकिरित किरणों को भी ऋभु कहा गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि वे विकिरण प्रक्रिया (Radiation Process) अधिष्ठाता देवता हैं । वे तीन भाई हैं – ऋभु, विभु, एवं वाज । ये क्रमशः शिल्पी पदार्थों के रुपांतरण कर्ता, विस्तारक, तथा बल-संचारक हैं ।

उपर्युक्त प्रमाणों से यह निश्चितरुपेण सिद्ध होता है कि उन्होंने अपने अतिवृद्ध तथा जीर्ण माता-पिता को युवावस्था प्रदान किया था जो यह दर्शाता है कि वे चिकित्सा-विज्ञान में अत्यंत प्रवीण थे । ऐसा चमत्कार आज तक आधुनिक वैज्ञानिक नहीं कर पाये हैं । वैसे आधुनिक वैज्ञानिक इस विषय पर वर्षों से शोधरत हैं जिसमें आऊब्रे-डि-ग्रे का नाम प्रसिद्ध है ।

1997 के दौरान अनेक समाचारपत्रों ने उन वैज्ञानिकों को भगवान् का दर्जा दे डाला था जिन्होनें “डॉली” नामक क्लोन का निर्माण किया था । सम्भवतः उसी प्रकार वैदिक-ऋषियों ने भी ऋभुओं को देवतुल्य बताया हो ।

 

संदर्भ :-

  1. ऋग्वेद संहिता :- पं श्रीराम शर्मा “आचार्य”
  2. डॉ. पद्माकर विष्णु वार्तक जी के शोध-प्रबंध 

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