November 29, 2023

यज्ञ का तत्वदर्शन व विज्ञान -10/03/2019

Ceremonial Sacrifice ( Agnihotra, Hawan or Yahna )

? होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से, जल्दी प्रसन्न होते हैं भगवान यज्ञ से ?

? 10/03/2019_प्रज्ञाकुंज सासाराम_ यज्ञीय ज्ञान विज्ञान_पंचकोशी साधना प्रशिक्षक बाबूजी श्री लाल बिहारी सिंह एवं आल ग्लोबल पार्टिसिपेंट्स। ?

? ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो नः प्रचोदयात् ?
? वीडियो अवश्य रेफर करें ?

? बाबूजी:-

? यज्ञोपैथी शारीरिक एवं मानसिक उपचार के साथ साथ अध्यात्मिक विकास करता है। गीता मे कहा गया यज्ञ तप और दान दैनिक कर्म के अंदर आते हैं। देव पूजन, दान एवं संगति क्रम यज्ञ के अंतर्गत आते हैं। हर एक मनुष्य किसी ना किसी योग्यता से निश्चित रूप से विभूषित है एवं जब हम इसे लोकसेवा मे लगाते हैं तो यह यज्ञ बन जाता है।

? देव पूजन अर्थात देवत्व संवर्द्धन। ब्रह्म संयोजन ही उपासना। ईश्वरीय चेतना से सुर से सुर मिलाना ही असुरत्व का नाश है। समन्वय नितांत आवश्यक है। कथनी और करनी का भेद मिटे।

? हर एक कर्म यज्ञ हो अर्थात् जीवन यज्ञमय हो। ब्रह्म ज्ञानी राजा जनक के प्रश्नोत्तरी मे याज्ञवल्क्य ऋषि कहते हैं की गृहस्थ के लिए नित्य यज्ञ महती लाभकारी है। अगर घी उपलब्ध ना हो तो वनस्पतियों का तेल यज्ञीय कार्य मे प्रयोग कर सकते है। वनस्पति का तेल उपलब्ध ना हो तो जड़ी बूटी को प्रयोग मे लावें। जड़ी बूटी उपलब्ध ना हों तो जल का जल मे आहूति दिया जा सकता है। और जल भी उपलब्ध ना हो तो भावनाओ की आहूति भाव यज्ञ, ज्ञान यज्ञ किया जाये।

? पांचो कोश पांच अग्नि कुंड। पंचकोश साधना महायज्ञ। सरल सहज सर्वसुलभ:-

? अन्नमयकोश यज्ञ – प्राणाग्नि प्रदीप्त करने हेतु आसन, उपवास, तत्वशुद्धि, तपश्चर्या।

? प्राणमयकोश यज्ञ – जीवाग्नि प्रदीप्त करने हेतु प्राणायाम, बंध, मुद्रा।

? मनोमयकोश यज्ञ – योगाग्नि प्रदीप्त करने हेतु जप, ध्यान, त्राटक, तन्मात्रा साधना।

? विज्ञानमयकोश यज्ञ – आत्माग्नि प्रदीप्त करने हेतु सोऽहं, आत्मानुभुति योग, स्वर साधना, ग्रंथि बेधन।

? आनंदमयकोश यज्ञ – ब्रह्माग्नि प्रदीप्त करने हेतु नाद साधना, बिंदु साधना, कला साधना, तुरीय स्थिति।

? योगः कर्मशु कौशलम्। कुशलता पूर्वक कर्म करें। सत्कर्म यज्ञ है। इंद्रिय संयम भी यज्ञ। संशाधनों का सदुपयोग भी यज्ञ। योगस्थ कुरू कर्मणि। निर्लिप्त भाव से किया गया कर्म यज्ञ है।

? परमात्मा मे भी आत्मा की आहूति यज्ञ। परम पूज्य गुरूदेव ध्यान साधना मे बताते हैं सविता साधक एक, भक्त भगवान एक। विलय – समर्पण – विसर्जन।

? जप, ध्यान, स्वाध्याय एवं सत्संग संपूर्ण रूप से अहिंसात्मक यज्ञ। स्वाध्याय यज्ञ हमेशा किया जा सकता है।

? परमपूज्य गुरूदेव ने प्राचीन जटिल यज्ञ पद्धति को वर्तमान युगानुरूप सरलीकृत कर हमे दिया। दीप यज्ञ और ध्यान यज्ञ जैसे सरल सहज सर्वसुलभ यज्ञीय ज्ञान विज्ञान हमे दिया।

? अवधूतोपनिषद् का अध्ययन अवश्य करें। भगवान् दत्तात्रेय शिव अवधूतों के अराध्य। अ – अविनाशी, व – वरेण्यं, धू – सांसारिक बंधनों की धू धू आहूति, त – तत्वमसि।

? हर एक योग जो श्रेष्ठता की ओर ले जा रहा है यज्ञ है। ऋषि-मुनि, यति, तपस्वी योगी निष्काम यज्ञ करते हैं तो आर्त, अर्थी, चिंतित, भोगी सकाम यज्ञ करते हैं। आत्मा का परमात्मा से योग यज्ञ। अर्जुन ने प्रश्न आहुति दी तभी ज्ञानों की आहूति पड़ी।

? पशु बलि अर्थात काम, क्रोध, मद, लोभ, दंभ, दुर्भाव, द्वेष जैसे पशु चित्त वृत्ति की बलि देनी है ना की जानवरों को काटा पीटा जाये। सारे देवता के वाहन पशु अर्थात यह पशु को भी अपना गुरू मानते थे। उनसे भी सीखते थे। सर्पासन, मयूरासन, हलासन।

? ॐ शांति शांति शांति ?
? जय युगऋषि श्रीराम?

संकलक – श्री विष्णु आनन्द जी

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