September 26, 2023

Cosmic Consciousness

शिवसंकल्प उपनिषद – मनोमय कोश – चैत्र नवरात्र – प्रारंभिक कक्षाएं

? 10/04/2019_प्रज्ञाकुंज सासाराम_ नवरात्रि साधना_ शिवसंकल्प उपनिषद् _ पंचकोशी साधना प्रशिक्षक बाबूजी “श्री लाल बिहारी सिंह” एवं आल ग्लोबल पार्टिसिपेंट्स। ?

? ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो नः प्रचोदयात् ?

? यस्मिन्नृचः साम यजूंषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः ।
यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।

अन्वय
यस्मिन् ऋचः यस्मिन् सामः यजूंषि रथानाभौ अराः इव प्रतिष्ठिता यस्मिन् प्रजानां सर्वं चित्तं ओतं तत् में मनः शिवसंकल्पं अस्तु ।

सरल भावार्थ:- हे परमात्मा ! जिस मन में वैदिक ऋचाएं समाई हुई हैं, जिसमें साम और यजुर्वेद के मन्त्र ऐसे प्रतिष्ठित हैं, जैसे रथ के पहिये में अरे स्थित होते हैं (लगे होते हैं) तथा जिस मन में प्रजाजनों का सकल ज्ञान समाहित है, ऐसा हमारा मन शुभ संकल्पों से युक्त हो ।

? बाबूजी:-

? मन को केवल व्यक्तिगत स्तर पर ना लें वरन् समष्टि मन के रूप मे लें। समष्टि मन मतलब चिदाकाश। ईशा वास्य इदं सर्व॔। संकीर्णता को छोड़ दे तो सर्वव्यापक @ समष्टि से रेजोनेंस @ तादात्म्यता स्थापित करना सहज हो जाता है। व्यष्टि मन को समष्टि मन से जोड़े।

? ॐ स्तुता मया वरदा वेद माता प्रचोदयंतां पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यम दत्वा ब्रजत ब्रह्मलोकम्।।

? जप, ध्यान, त्राटक एवं तन्मात्रा साधना ये चार टूल्स ऐसे हैं जिससे विशुद्ध चित्त को पाया जा सकता है। विशुद्ध चित्त मे वेद ज्ञान स्वयंमेव अवतरित हो जाता है।

? जप अर्थात् ईश्वरीय गुण का बारंबार स्मरण चिंतन मनन। गुरूदेव ने हमे आत्मबोध और तत्वबोध की साधना दी।

? ईश्वर का दिया गया शरीर है इसके रेशे रेशे की सफाई करनी है। पांचो कोश की सफाई करनी है। इस किराये के घर का ठीक से केयर नही करेंगे तो ईश्वर बारंबार मौका नही देंगे। दो चार बार मौका दे देते हैं क्योंकि वह सहिष्णु हैं। संकीर्णता लाकर चेतना को धूमिल ना करें।

? ऋग्वेद अर्थात् आत्मज्ञान @ ब्रह्मज्ञान। गुरूदेव कहते हैं समस्याएं अनेक समाधान एक अध्यात्म

? ज्ञानवान ही जीवित हैं। संसार के सारे दुखो @ समस्या का एकमात्र कारण अज्ञान है। अज्ञान ही चिपकाव का एकमात्र कारण है। इसे दूर करने के लिए तप करें। हमारे गुरूदेव तपोनिष्ठ हैं। चरैवेति चरैवेति मूल मंत्र है अपना।

? थोथा ज्ञान ना हो। प्रैक्टिकल (शोधरत) कर ज्ञान को आत्मसात किया जाये। लक्ष्य हमेशा संज्ञान मे रहे भुलक्कड़ी ना हो। लक्ष्य @ स्वयं को जानना (मैं क्या हूं?) & धरती को स्वर्ग बनाना।

? ज्ञान मे श्रम का योग करें तो धन @ रिद्धि सिद्धि निश्चित रूप से आयेगी। भीख ना मांगे। वीर भोग्या बसुंधरा। किसी पर दया दिखानी है तो प्रेरणा दें। कोई बहानेबाजी नही। ईश्वर के संतान हैं हम। सोऽहं @ अहं ब्रह्मस्मि। जिम्मेदारीयों को सहस्र स्वीकार करें और सजल श्रद्धा और प्रखर प्रज्ञा के साथ संधान करें।

? रेजोनेंस मतलब तादात्म्यता, सायुज्यता। सुर मे सुर नही मिला तो असुर बन जाता है। भेद दृष्टि जैसे जैसे खत्म हो जाएगी अभेद दर्शन प्राप्त होता जायेगा। संसार मे कुछ भी अशुभ नही; अपने को ज्ञान साधना के उस स्तर पर शोधरत करना होगा।

? गायत्री साधना को मजहबी तौर पर ना लिया जाए। सभी लोग प्राण की साधना करते थे। वेद के सारे मंत्र सभी लोगो के लिए एक समान है। गुरूदेव ने अपने साहित्य का कोई कापीराइट नही रखा। सबके लिए परोस दिया। हमारे गुरूदेव वेदमूर्ति भी हैं।

? दोष दृष्टि देखना @ छिद्रावेशन एवं परावलंबन को छोड़े। ईश्वर निरालंब हैं फिर उनके बच्चे परावलंबन क्यों लेवे।

? ॐ शांति शांति शांति ?

? जय वेदमूर्ति तपोनिष्ठ महाप्राज्ञ युगऋषि श्रीराम। ?

संकलक – श्री विष्णु आनन्द जी

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