November 29, 2023

? 12/04/2019_प्रज्ञाकुंज सासाराम_ नवरात्रि साधना_ महामृत्युंजय मंत्र _ पंचकोशी साधना प्रशिक्षक बाबूजी “श्री लाल बिहारी सिंह” एवं आल ग्लोबल पार्टिसिपेंट्स। ?

? ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो नः प्रचोदयात् ?

? ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्द्धनम् ऊर्वारूक मिव् बन्धनान् मृत्योर मुक्षीय मां मृतात्।

त्रयंबकम – त्रि नेत्रों वाला; कर्मकारक।
यजामहे – हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम – मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि – एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम – वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक – ककड़ी।
इवत्र – जैसे, इस तरह।
बंधनात्र – वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु –  मृत्यु से
मुक्षिया – हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।)

अनुवाद:- हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।

? बाबूजी:-

? जप से मंत्र सिद्ध होता है अर्थात वो प्रेरणा देता है की इसको धारण करें।

? विश्वामित्र मंत्र द्रष्टा अर्थात् मंत्र को देखा ना की उसको बनाया। चेतना के उस स्तर जाकर मंत्र को देखा।

? संपूर्ण ब्रह्मांड को सुचारू रूप चलाने के लिए एक युजर बूक दिया गया जिसे हम वेद कहते हैं। अतएव स्वाध्याय आवश्यक है।

? गायत्री महामंत्र हमे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। दिमाग मे उस तरह के विचार रखो कि हमेशा आनंद मे रहो। पहले शिखा बंधन था गुरूदेव ने उसका रूपांतरण शिखा वंदन मे किया अर्थात् ज्ञान का वंदन करो। ज्ञान तब मिलेगा जब हम प्रैक्टिकल करेंगे अर्थात् उसे अनुभव करें।

? यज्ञ भगवान हमे सत्कर्म दिखाये अर्थात् सभी सत्कर्म यज्ञ हैं।

? सभी समस्याओं का समाधान अध्यात्म की गंगोत्री है अर्थात गायत्री महामंत्र है। आर्ट ऑफ लिविंग का महामंत्र है। सबसे सिम्पलेस्ट वे में ईश्वर को पाने का एक ही मार्ग है “भर्गो देवस्य धीमहि”। भुंज डालो सारे पाप को देवत्व (ईश्वरीय गुण) के धारण करने के लिए। गायत्री महामंत्र ही तीनो शूल का नाशक त्रिशूल है। महामंत्र जितने जगमाही कोई गायत्री सम नाही।

? भाग्यशाली वो नही जो मानव शरीर पाया वरन् वो हैं जो मानवीय अंतःकरण को पाया।

? कोई भी मनुष्य जो प्रकृति के साथ तालमेल बिठा कर चलते हैं वो सर्वदा सुखी रहेंगे।

? ईश्वर जब कण कण मे हैं फिर भी हम भयभीत रहते हैं अर्थात् स्वयं का नुकसान स्वयं करते हैं “आत्महंता”।

? महर्षि वशिष्ठ महामृत्युंजय मंत्र के द्रष्टा हैं। महामृत्युंजय मंत्र अमरता का बोध कराता है। जप करने का अर्थ बड़बड़ाने का क्रम नही प्रत्युत् उसमे जीने का क्रम है।
(? मास्टर फार्मूला)

? सारे कष्टों का कारण चिपकाव @ आसक्ति उन विषयों से हैं जो परिवर्तनशील (भौतिकता) है।

? ईश्वर जो त्र्यमब्कं (सर्वव्यापक @ भूः भुवः स्वः तीनो लोको मे है)।

? जिस कारण से आप रोगी हुए उस कारण को हटा दें। मनुष्य अपने भाग्य का विधाता स्वयं है।

? ऊर्वारूक @ खरबूजा जैसे पकने के बाद स्वयं डंठल से अलग हो जाता है वैसे हम भी डंठल @ भौतिकता से चिपकाव हटा लेवे। और अमृत तत्व आत्मा को धारण करें उससे अलग ना होवें।

? यम नियम अर्थात आसक्ति @ चिपकाव को छुड़ाने का क्रम। चिपकाव हटाने के लिए सांख्य दर्शन और चिपकने के लिए योग दर्शन।

? पंचकोशी साधना से बालक से लेकर वयोवृद्ध तक आत्मसाक्षात्कार @ ब्रह्म साक्षात्कार कर सकते हैं। ऋषि-मुनि, यति, तपस्वी, योगी ही नही आर्त, अर्थी, चिंतित, भोगी सभी। शिव का मंत्र अर्थात् भोलेनाथ का मंत्र।

? ॐ शांति शांति शांति ?

? जय युगऋषि श्रीराम। ?

संकलक – श्री विष्णु आनन्द जी

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