November 28, 2023

पंचकोशी साधना – पद्धति, नियम, अनुशासन & पालन – 20/04/2019

? 20/04/2019_प्रज्ञाकुंज सासाराम_ पंचकोशी साधना पद्धति, नियम, अनुशासन & पालन  _ प्रशिक्षक बाबूजी “श्री लाल बिहारी सिंह” एवं आल ग्लोबल पार्टिसिपेंट्स। ?

? ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो नः प्रचोदयात् ?

? आदरणीय शिव कुशवाहा भैया, गुड़गांव से। वार्म अप, गतिसंचालन, प्रज्ञायोग, सर्वांगासन का डैमो दिया।

? बाबूजी:-

? प्राणमयकोश के साधक/प्रशिक्षक जो कक्षा लेने मे सक्षम हो वो मनोमयकोश कक्षा मे जाने हेतु डेमो देंगे।

? आने वाली कक्षा गहन से गहनतम होती जायेंगी। आने वाली कक्षाओं मे सभी फिल्टर्ड होते जायेंगे। 400 से अधिक साधक शोधरत हैं। फ्री माइंड से शोध करें।

? वीर भोग्या वसुंधरा।  साधक को प्राणवान @ बहादुर होना चाहिए।

? क्रियायोग ब्रह्मास्त्र के समान। पंचकोश के 19 क्रिया योग:-

(1) अन्नमयकोश (प्राणाग्नि): आसन/ उपवास/तत्वशुद्धि/तपश्चर्या।
(2) प्राणमयकोश (जीवाग्नि): प्राणायाम /बंध /मुद्रा।
(3) मनोमयकोश (योगाग्नि): जप/ ध्यान/त्राटक /तन्मात्रा।

(4) विज्ञानमयकोश (आत्माग्नि): सोऽहम साधना/आत्मानुभुति/स्वर संयंम/ग्रंथिभेदन।

(5) आनंदमयकोश (ब्रह्माग्नि): नाद/बिन्दु/कला साधना/तुरीय स्थिति।

? एक विवेकानंद ने पूरे विश्व की आत्म चेतना को झकझोर दिया। गुरूदेव को आज के दस हजार विवेकानंद की जरूरत। आज के  वैज्ञानिक सेल्फ डिपेंडेंट + वैज्ञानिक + अध्यात्मिक होने चाहिए।

? अपने इगो के दीवार को तोड़ना होगा।

? प्रतिकूल परिस्थिति मे भी आनंद मे रहने की स्थिति की कला सीखनी होगी।

? हमे हमेशा छात्र बने रहना है। शोधक्रम जारी रखना है। ऋषि परंपरा का भी पालन करना है ताकि ऋषि अनुकंपा बनी रहे और श्रद्धा भी बनी रहे।

? मनोमयकोश की साधना के लिए वाऽगमय संख्या 20, शिवसंकल्पो उपनिषद्, महोपनिषद्, योगवशिष्ठ का स्वाध्याय करें।

? साधना मे ऐप्लिकेशन, प्रैक्टिकल से साधना मे रूचि बनी रहती है। जिस सब्जेक्ट पर आप चल रहे हों उसके एक्सपर्ट से संपर्क मे रहा जाये उनसे सत्संग का क्रम चलता रहे।

? संगठन मे प्रेम भाव रखने के लिए नेतृत्वकर्ता की भूमिका मे स्वयं को ना माने। इससे अधिकारत्व की भावना आती है। दुसरो की बातो को दरकिनार करने से फिर चापलूसो की भीड़ आस-पास रह जाती है।

काम स्वयं किया जाए; श्रेय दुसरो को देता रहा जाये। प्रेम दीजिए तो लोग जान निकाल कर रख देंगे। अगर कोई नही समझ रहा है तो उसे अकेले मे समझाये ना की सामूहिक रूप से उन्हे लताड़ा जाये। संगठन का सहयोग आत्मिकी विकास को ध्यान मे रखकर करे। सबको विकास का फ्रीडम दिया जाये।

? अनासक्त कर्मयोग @ आसक्ति रहित अर्थात् चिपकाव को छोड़ने से ही आत्मा मिलती है।

? गुरूदेव की एक वाक्य को हमेशा स्मरण रखे “तुम अपना मूल्य समझो और यकीन करो की तुम संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हो।”

? अनासक्त प्रेम अर्थात् बिना शर्तों के प्रेम @ बिना चिपकाव के प्रेम।

? ॐ शांति शांति शांति ?

? जय युगऋषि श्रीराम। ?

संकलक – श्री विष्णु आनन्द जी

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