मनोमय कोश – 21/04/2019

? 21/04/2019_प्रज्ञाकुंज सासाराम_ मनोमयकोश साधना _ प्रशिक्षक बाबूजी “श्री लाल बिहारी सिंह” एवं आल ग्लोबल पार्टिसिपेंट्स। ?
? ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो नः प्रचोदयात् ?
? आदरणीय गोकुल चंद्र भैया कोलकाता से। प्रज्ञायोग, महामुद्रा, प्रभावी-महाप्रभावी आसन एवं शीर्षासन का डेमो दिया। 56 वर्ष के हैं भैया; और उम्र के इस दौर मे भी भैया की ऊर्जा, फ्लेक्सिबिलिटी, सहजता एवं आत्मीयता अखंड प्रेरणास्रोत।
? बाबूजी:-
? पंचांग योग आत्मचेतना को परमात्म चेतना से जोड़ने का योग। पंच अग्नि क्रमशः प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि, ब्रह्माग्नि ऋषि हैं जो पांचो कोश को प्रज्वलित रखते हैं इसे ही पंचांग योग @ पंचकोशी साधना कहते है।
? ईश्वर प्रदत्त यह जो ह्युमन बाॅडी मिला है इसके दो उद्देश्य हैं; पहला आत्मिकी विकास दूसरा इस धरती को सुंदर बनाना। इसकी भुलक्कड़ी @ आत्म विस्मृति की वजह से ही आस्था संकट उत्पन्न हुआ है जो सभी कषाय कल्मेश को कारण है।
? प्रज्ञा योग के 16 स्टेप्स मे गायत्री महामंत्र के जप क्रम के साथ परम पूज्य गुरूदेव के द्वारा वर्णित हर एक स्टेप के लाभ का ध्यान करना चाहिए यह बहुत बेनीफिसयरी होगा।
? योगाभ्यास मे सुविधा योग का ख्याल रखना है। कम ऊर्जा खर्च कर ज्यादा लाभ लेना वैज्ञानिकी है।
? अपने भीतर के शिवत्व को जगाने के लिए पंचकोशी साधना कर प्राणवान बनना होता है। शिव पंचमुखी हैं।
? मनुष्य मे चेतना का केंद्र मन है। योगश्चित्तवृत्तिनिरोध का अध्याय अब शुरू हो गया। प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि पर अब गहन प्रैक्टिकल करना है।
? मन अत्यंत वेगवान है। पदार्थ के सुक्ष्म गुण शब्द, रूप, रस, गंध एवं स्पर्श से चिपकने का स्वभाव है इसका। मन को अगर नियंत्रित कर लेवें तो यह चिरयुवा है।
? मन लगातार विचारों का वाष्पीकरण @ वैपोराइजेशन करता रहता है। निरंतर सुख मे तल्लीन रहना चाहता है। यह इन्द्रिय भोगों मे सुख ढूंढने लगता है और इसी को सर्व सुख मान लेता है और शरीर का नाश कर लेता है। संसार मे कोई भी भौतिक सुख ऐसा नही है जो शाश्वत आनंद दे सके।
जीवन के अंत तक जो शक्ति साथ देती है वह तप शक्ति है। अतः मन को साधना का फील्ड दे दिया जाए वह अनंत रिद्धि @ आत्मिकी एवं सिद्धि @ भौतिकी को पायेगा। जीवन स्वयमेव एक कल्पवृक्ष है।
? “जप/ध्यान/त्राटक/तन्मात्रा साधना” ये चार ऐसे टूल्स हैं जिससे बिगड़ैल से बिगड़ैल मन को नियंत्रित कर बेस्ट फ्रेंड बनाया जा सकता है। योगाग्नि को बढ़ाना है। हे अर्जुन तु योगी बन।
? अपने लक्ष्य को बारंबार स्मरण करना ही जप है। मैं चैतन्य हूं मैं आत्मा हूं।
? ए + पी + एम (अन्नमयकोश + प्राणमयकोश + मनोमयकोश) तीनो कोशों की साधना को साथ लेकर चलेंगे।
? स्वाध्याय माइंड को एक स्पेस देता है। अतः स्वाध्याय को साधना का एक नियमित अंग बनावें।
? मन का काम है विचारणा, बुद्धि का काम है निर्णय लेना, चित्त स्टोरेज है।
? पूज्य गुरूदेव आत्म समीक्षा को ध्यान कहते हैं। हम अपने अराध्य का ध्यान करते हैं हमे आत्म समीक्षा करनी है हमने अपने अराध्य के गुणों को कहां तक आत्मसात किया है; हमारी स्थिति कहां है।
? ॐ शांति शांति शांति ?
? जय युगऋषि श्रीराम। ?
संकलक – श्री विष्णु आनन्द जी