04- अथर्ववेद परिचय : शाखा विस्तार

अथर्ववेद का शाखा विस्तार
अन्य वेदों की तरह ‘अथर्ववेद’ की भी एकाधिक शाखाओं का उल्लेख मिलता है। सायण भाष्य के उपोद्धात, प्रपञ्च हृदय, चरण व्यूह (व्यासकृत) तथा महाभाष्य (पतंजलिकृत) आदि ग्रन्थों में अथर्ववेद की शाखाओं का उल्लेख पाया जाता है। महर्षि पतंजलि के महाभाष्य में अथर्ववेद की ‘नौ’ शाखाओं का उल्लेख है – नवधा ऽऽथर्वाणो वेदः (म० भा० पस्प० १.१.१)।
सर्वानुक्रमणी (महर्षि कात्यायनकृत) ग्रन्थ में इस संबंध में दो मत उद्धृत किये गये हैं। प्रथम मत के अनुसार पन्द्रह शाखाएँ हैं। वेदों की शाखाओं का प्रामाणिक वर्णन प्रस्तुत करने वाले ग्रन्थ ‘चरण व्यूह’ में अथर्व संहिता के ‘नौ’ भेद स्वीकार किये गये हैं, जो इस प्रकार हैं-
- १. पैप्पल
- २. दान्त
- ३. प्रदान्त
- ४. स्नात
- ५. सौल
- ६. ब्रह्मदाबल
- ७. शौनक
- ८. देवदर्शत और
- ९.चरणविद्य’।
आचार्य सायण ने भी अपनी अथर्ववेद भाष्यभूमिका में इसकी नौ शाखाएँ ही स्वीकार की हैं; परंतु उनके नाम चरण व्यूह में बताए गये नामों से किंचित् भिन्न हैं, वैसे अधिकांश विद्वानों ने आचार्य सायण द्वारा उल्लिखित नामों को प्रामाणिक माना है। वे इस प्रकार हैं –
- १. पैप्पलाद
- २. तौद
- ३. मौद
- ४. शौनकीय
- ५. जाजल
- ६.जलद
- ७. ब्रह्मवेद
- ८. देवदर्शी और
- ९. चारणवैद्य।
इस प्रकार अथर्ववेद की कुल नौ शाखाएँ प्रसिद्ध हैं; किन्तु वर्तमान में दो शाखाओं से सम्बद्ध संहिता ही उपलब्ध होती है, अन्य सात शाखाओं की संहिताएँ उपलब्ध नहीं होती।
जो दो शाखाएँ उपलब्ध हैं, उनमें भी एक शौनक संहिता ही आज की प्रचलित संहिता है, दूसरी पैप्पलाद संहिता यदा-कदा किसी पुस्तकालय में ही दर्शनार्थ उपलब्ध होती है, पठन-पाठन हेतु नहीं। इस प्रकार प्रमुख उपलब्ध संहिता शौनकीय ही है, इसके तथा अन्यों के विषय में उपलब्ध संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है।
१. पिप्पलाद संहिता – ‘प्रपञ्चहृदय’ नामक ग्रन्थ में इस संहिता की उपलब्ध जानकारी उपनिबद्ध है। उसके अनुसार इस संहिता के आदि मुनि प्रसिद्ध अध्यात्मवेत्ता ‘पिप्पलाद’ जी हैं । बीस काण्डात्मक इस संहिता की एक मात्र प्रति कश्मीर में उपलब्ध हुई, जो शारदा लिपि में थी, जिसे कश्मीर नरेश ने प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉ० राथ को १८८५ में उपहार स्वरूप प्रदान की थी। उसी की फोटो कॉपी तीन प्रति में सन् १९०१ ई० में डॉ० राथ महोदय ने छपाई थी। महाभाष्य के अनुसार इस संहिता का प्रथम मन्त्र ‘शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्रवन्तु न:’ है। छान्दोग्य मंत्र भाष्य में भी इसी मंत्र को पिप्पलाद संहिता का प्रथम मंत्र स्वीकार किया गया है – ‘शन्नो देवी’…. अथर्ववेदादिमन्त्रोऽयं पिप्पलाददृष्टः।’ आज कल की प्रचलित संहिता (शौनक) में यह मंत्र प्रथम काण्ड के षष्ठ सूक्त के पहले मंत्र के रूप में उपलब्ध है।
२. शौनक संहिता – गोपथ ब्राह्मण तथा आजकल की प्रचलित अथर्व संहिता इसी शौनक शाखा की ही है। इस संहिता में २० काण्ड हैं, जबकि अनेक विद्वान् इसे अष्टादश काण्डात्मक ही मानते हैं। उनका कहना है कि उन्नीसवाँ और बीसवाँ काण्ड ‘खिल काण्ड’ हैं, जो पीछे से अथर्ववेद में सम्मिलित कर लिये गए; किन्तु अन्तत: २० काण्डीय संहिता को मान्यता दे दी गयी है।
इसके सूक्तों के विषय में मत – वैभिन्य है। बृहत्सर्वानुक्रमणी के अनुसार इसमें ७५९ सूक्त है, परंतु वैदिक यन्त्रालय अजमेर से प्रकाशित संहिता में ७३१ सूक्त हैं। कई समीक्षकों ने ७३० सूक्त ही माने हैं। वेदाध्ययन परम्परा को गतिशील बनाने में स्वामी गंगेश्वरानन्द जी का अपूर्व योगदान है। उन्होंने चारों वेदों को एक जिल्द में प्रकाशित कराया है, उनके अथर्ववेद में ७३६ सूक्त उपलब्ध हैं।
इन सभी संहिताओं की विवेकसम्मत समीक्षा ७५९ सूक्त मानने के पक्ष में जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण ‘बृहत्सर्वानुक्रमणी’ का समर्थन है, साथ ही वेदों तथा वैदिक साहित्य के शोध एवं प्रकाशन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले वैदिक शोध संस्थान, साधु आश्रम, होशियारपुर, पंजाब से प्रकाशित सायणाचार्यकृत भाष्य सहित अथर्व संहिता है। इससे पूर्व सन् १९२९ में सनातन धर्म यन्त्रालय, मुरादाबाद से प्रकाशित अथर्व संहिता में भी ७५९ सूक्त ही प्राप्त होते हैं। इसी आधार पर प्रस्तुत संहिता में भी सूक्त की संख्या ७५९ रखी गई है। सामान्यत: अथर्ववेद में ६००० मंत्र होने का उल्लेख पाया जाता है। किसी-किसी संहिता में ५९८७ मंत्र मिलते हैं (स्वाध्याय मंडल पारडी, बलसाड़ गुजरात – बड़ा टाइप – बड़ी साइज); किन्तु प्रचलित संहिता में मंत्र संख्या ५९७७ ही उपलब्ध होती है। इस संहिता का दक्षिण भारत में विशेष प्रचलन है। आचार्य सायण का भाष्य भी इसी संहिता पर उपलब्ध है।
अथर्ववेद की अन्य संहिताएँ
अथर्ववेद की उक्त दो प्रमुख संहिताओं के अतिरिक्त, जिन अन्य सात संहिताओं (शाखाओं) का उल्लेख मिलता है, वे नाम मात्र के लिए ही हैं। ‘मौद’ संहिता का उल्लेख महाभाष्य (४.१.८६) तथा शाबर भाष्य(१.१.३०) में मिलता है। अथर्व परिशिष्ट में मौद तथा जलद शाखा वालों को पुरोहित न बनाने के रूप में उल्लेख मिलता है। वहाँ इनसे राष्ट्र के विनाश की आशंका व्यक्त की गई है। अथर्व की अन्तिम शाखा चारण-वैद्या के विषय में कौशिक सूत्र (६.३७) की व्याख्या तथा अथर्व परिशिष्ट (२२.२) से कुछ जानकारी मिलती है। वायु पुराणानुसार इस संहिता में ६०२६ मन्त्र थे; परंतु इस संहिता की कोई प्रति उपलब्ध नहीं। अन्य शाखाएँ तौद,जाजल, ब्रह्मवद तथा देवदर्श केवल नामत: प्रसिद्ध हैं, उनका कोई प्रमाण प्राप्त नहीं होता।
भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य
संदर्भ ग्रन्थ : अथर्ववेद-संहिता परिचय वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा