05- अथर्ववेद परिचय : भाष्यकार

अथर्ववेद के भाष्यकारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है – १. प्राचीन २. अर्वाचीन।
सायण – अथर्ववेद के प्राचीन भाष्यकारों में एक मात्र आचार्य सायण (१४वीं शताब्दी) का भाष्य ही उपलब्ध होता है, वह भी लगभग दो तिहाई पर ही, एक तिहाई पर उपलब्ध नहीं है। जिस पर सायण भाष्य उपलब्ध नहीं, वे काण्ड हैं – ५,९,१०,१२,१३, १४,१५ तथा १६। इनके अतिरिक्त ८वें तथा २०वें काण्ड पर सायण भाष्य आंशिक रूप से ही उपलब्ध है।
सायण भाष्य पर आधारित तीन संहिताएँ प्रकाशित हैं – १.निर्णय सागर प्रेस सं० स्व० शंकर पाण्डुरंग पण्डित १८९५-९८ ई० २. सनातन धर्म यन्त्रालय मुरादाबाद (उ०प्र०) सं० श्री रामचन्द्र शर्मा १९२९ ई० तथा ३.विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान होशियारपुर (पंजाब) सं० श्री विश्वबन्धु १९६०-६४ ई०। अर्वाचीन भाष्यकारों में पाश्चात्य तथा भारतीय विद्वान् दोनों हैं। उनका संक्षिप्त परिचय निम्नांकित है-
१. ग्रिफिथ – सम्पूर्ण अथर्ववेद का अंग्रेजी अनुवाद आर०टी० एच० ग्रिफिथ ने दो भागों में बनारस से प्रकाशित किया (१८९५-९६ई०)।
२. ह्विटनी – सम्पूर्ण अथर्ववेद का अंग्रेजी अनुवाद डब्ल्यू० डी० ह्विटनी ने किया, जिसका संपादन सी० आर० लानमन ने किया (१९०५ ई०)।
३.ब्लूमफील्ड – अथर्ववेद का अधिकांश भाग अंग्रेजी में एम० ब्लूमफील्ड ने अनुवादित किया।
४. ल्यूडविश – अथर्ववेद का जर्मन भाषा में अनुवाद ए० ल्यूडविश और जे० ग्रिल ने किया।
५. सातवलेकर – ‘अथर्ववेद का सुबोध भाष्य’ नाम से एक विस्तृत भाष्य श्री श्रीपाददामोदर सातवलेकर जी ने बड़े आयासपूर्वक सम्पन्न किया।
६. जयदेव विद्यालंकार – पं० जयदेव शर्मा ने अथर्ववेद का भाष्य आर्य साहित्य मण्डल लिमिटेड, अजमेर से प्रकाशित किया है।
भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य
संदर्भ ग्रन्थ : अथर्ववेद-संहिता परिचय वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा