अथर्ववेद-संहिता – 1:14 – कुलपाकन्या सूक्त
अथर्ववेद-संहिता
॥अथ प्रथमं काण्डम्॥
[१४- कुलपाकन्या सूक्त]
[ ऋषि – भृग्वङ्गिरा। देवता – वरुण अथवा यम। छन्द -१ ककुम्मती अनुष्टुप्, २, ४ अनुष्टुप् , ३ चतुष्पात् विराट अनुष्टप्।]
सामान्य अर्थो में प्रथम मंत्र में प्रयुक्त ‘अस्याः’ का अर्थ कन्या किया गया है। इस आधार पर कन्या को योग्य वर के सुपुर्द करने का भावार्थ लिया जाता है किन्तु इस सूक्त के देवता विद्युत्, वरुण एवं यम हैं। इस आधार पर ‘अस्याः’ का अर्थ विद्युत् ग्राह्य है। विद्युत् का वरण करने वाले ‘वरुण’ तथा उसका नियमन करने वाले ‘यम’ कहे जा सकते हैं। इस संदर्भ में कन्या ‘विद्युत्’ उसके पिता ‘विद्युत्-उत्पादक’ तथा वर उसके प्रयोक्ता-विशेषज्ञ कहे जाने योग्य हैं। विज्ञ पाठक इस संदर्भ में भी मंत्राओं को समझ सकते हैं-
६३. भगमस्या वर्च आदिष्यधि वृक्षादिव स्रजम्।
महाबुन इव पर्वतो ज्योक् पितृष्वास्ताम्॥१॥
वृक्षों से जैसे मनुष्य फूल ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार इस कन्या (अथवा विद्युत) के सौन्दर्य तथा ओज को हम स्वीकार करते हैं। जिस तरह विशाल पर्वत धरती पर स्थिर रहता है, उसी प्रकार यह कन्या भयरहित होकर (अपने अथवा मेरे) माता-पिता के घर पर बहुत समय तक रहे॥१॥
६४. एषा ते राजन् कन्या वधूर्नि धूयतां यम। सा मातुर्बध्यतां गृहेऽथो भ्रातुरथो पितुः॥२॥
हे नियम पालन करने वाले प्रकाशवान्! यह कन्या आपकी वधू बनकर आचरण करे। यह कन्या आपके घर में रहे, माता-पिता अथवा भाई के घर में सुखपूर्वक रहे ॥२॥
६५. एषा ते कुलपा राजन् तामु ते परि दद्मसि।
ज्योक् पितृष्वासाता आ शीर्ष्णः समोप्यात्॥३॥
हे राजन् ! यह कन्या आपके कुल की रक्षा करने वाली है, उसको हम आपके निमित्त प्रदान करते हैं। यह निरंतर (अपने या तुम्हारे) माता-पिता के बीच रहे। शीर्ष से (श्रेष्ठ स्तर पर रहकर अथवा विचारों से) शान्ति एवं कल्याण के बीज बोए ॥३॥
६६. असितस्य ते ब्रह्मणा कश्यपस्य गयस्य च।
अन्तःकोशमिव जामयोऽपि नह्यामि ते भगम्॥४॥
हे कन्ये! आपके सौभाग्य को हम ‘असित’ ऋषि, ‘गय’ ऋषि तथा ‘कश्यप’ ऋषि के मंत्र के द्वारा उसी प्रकार बाँधकर सुरक्षित करते हैं, जिस प्रकार स्त्रियाँ अपने वस्त्रों-आभूषणों आदि को गुप्त रखकर सुरक्षित करती हैं ॥४॥
[विद्युत् के संदर्भ में असित का अर्थ बन्धनरहित स्वतंत्र प्रवाह, कश्यप का अर्थ पश्यक का भाव- देखने योग्य प्रकाशोत्पादक तथा गय का अर्थ प्राण- ऊर्जा है। इस प्रकार विद्युत् की उक्त विशेषताओं को ऋषियों ने सूत्रों के माध्यम से प्रकट किया है।]
भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य