अथर्ववेद-संहिता – 1:16 – शत्रुबाधन सूक्त
अथर्ववेद-संहिता
॥अथ प्रथमं काण्डम्॥
[१६- शत्रुबाधन सूक्त]
[ ऋषि – चातन। देवता – अग्नि, इन्द्र, वरुण (३-४ दधत्य सीस)। छन्द -अनुष्टुप, ४ ककुम्मती अनुष्टुप्।]
७१. ये ऽमावास्यां३ रात्रिमुदस्थुव्राजमत्रिणः।
अग्निस्तुरीयो यातुहा सो अस्मभ्यमधि ब्रवत्॥१॥
अमावस्या की अँधेरी रात के समय मनुष्यों पर घात करने वाले तथा उनको क्षति पहुँचाने वाले, जो असुर आदि विचरण करते हैं, उन असुरों के सम्बन्ध में असुर विनाशक चतुर्थ अग्निदेव हमें जानकारी प्रदान करें ॥१॥
[यहाँ अग्नि के लिए तुरीय (चतुर्थ) सम्बोधन विचारणीय है। अग्नि के तीन प्रयोग (गार्हपत्याग्नि, आहवनीयाग्नि तथा दक्षिणाग्नि) यज्ञीय होते हैं। चतुर्थ प्रयोग सुरक्षापरक उपकरणों के लिए किये जाने से उसे तुरीय अग्नि कहा गया है। रात्रि में चोरों के आने की सूचना देने के लिए कोई ‘थर्मो पायल या इन्फ्रारेड डिडैक्टर’ जैसे प्रयोग का संकेत इस मंत्र में मिलता है।]
७२. सीसायाध्याह वरुणः सीसायाग्निरुपावति।
सीसं म इन्द्रः प्रायच्छत् तदङ्ग यातुचातनम्॥२॥
वरुणदेव ने सीसे के सम्बन्ध में कहा (प्रेरित किया) है। अग्निदेव उस ‘सीसे’ को मुनष्यों की सुरक्षा करने वाला बताते हैं। धनवान् इन्द्र ने हमें ‘सीसा’ प्रदान करते हुए कहा है-हे आत्मीय ! देवों द्वारा प्रदत्त यह ‘सीसा’ असुरों का निवारण करने वाला है ॥२॥
[तीन देवताओं वरुण, अग्नि एवं इन्द्र द्वारा ‘सीसे’ से आत्मरक्षा तथा शत्रु निवारण के प्रयोग बतलाए गए हैं। इन्द्र संगठन सत्ता ‘सीसे की गोली-छरों का रहस्य बतला सकते हैं वरुण ( हाइड्रॉलिक प्रेशर से) तथा अग्नि (विस्फोटक शक्ति से) ‘सीसे के प्रहार की विद्या प्रदान कर सकते हैं। तीसरे एवं चौथे मंत्रमें सीसे को अवरोध हटाने वाला तथा वेधक कहकर इसी आशय को स्पष्ट किया गया है।]
७३. इदं विष्कन्धं सहत इदं बाधते अत्रिणः।
अनेन विश्वा ससहे या जातानि पिशाच्याः॥३॥
यह ‘सीसा’ अवरोध उत्पन्न करने वालों को हटाता है तथा असुरों को पीड़ा पहुँचाता है। इसके द्वारा असुरों की समस्त जातियों को हम दूर करते हैं ॥३॥
७४. यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पुरुषम्।
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसो अवीरहा॥४॥
हे रिपो ! यदि तुम हमारी गौओं, अश्वों तथा मनुष्यों का संहार करते हो, तो हम तुमको सीसे के द्वारा वेधते हैं। जिससे तुम हमारे वीरों का संहार न कर सको ॥४॥
भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य