November 28, 2023

अथर्ववेद-संहिता – 1:17 – रुधिरस्रावनिवर्तनधमनीबन्धन सूक्त

अथर्ववेद-संहिता
॥अथ प्रथमं काण्डम्॥

[१७- रुधिरस्रावनिवर्तनधमनीबन्धन सूक्त ]

[ ऋषि – ब्रह्मा। देवता – योषित् , लोहितवासस , हिरा। छन्द -अनुष्टुप, १ भूरिक् अनुष्टुप्, ४ त्रिपदावर्षी गायत्री।]

*७५.अमूर्या यन्ति योषितो हिरा लोहितवाससः।
अभ्रातर इव जामयस्तिष्ठन्तु हतवर्चसः॥१॥

शरीर में लाल रंग के रक्त का वहन करने वाली जो योषा (धमनियाँ) हैं,वे स्थिर हो जाएँ। जिस प्रकार भाई रहित निस्तेज बहिनें बाहर नहीं निकलती, उसी प्रकार धमनियों का खून बाहर न निकले ॥१॥

७६. तिष्ठावरे तिष्ठ पर उत त्वं तिष्ठ मध्यमे।
कनिष्ठिका च तिष्ठति तिष्ठादिद् धमनिर्मही॥२॥

हे नीचे, ऊपर तथा बीच वाली धमनियो ! आप स्थिर हो जाएँ । छोटी तथा बड़ी धमनियाँ भी खून बहाना बन्द करके स्थिर हो जाएँ ॥२॥

७७. शतस्य धमनीनां सहस्रस्य हिराणाम्।
अस्थुरिन्मध्यमा इमाः साकमन्ता अरंसत॥३॥

सैकड़ों धमनियों तथा सैकड़ों नाड़ियों के मध्य में मध्यम नाड़ियाँ स्थिर हो गई हैं और इसके साथ-साथ अन्तिम धमनियाँ भी ठीक हो गई हैं, जिसका रक्त स्राव बन्द हो गया है॥३॥

७८. परि वः सिकतावती धनूर्बृहत्यक्रमीत्। तिष्ठतेलयता सु कम्॥४॥

हे नाड़ियो ! आपको रज नाड़ी ने और धनुष की तरह वक्र धनु नाड़ी ने तथा बृहती नाड़ी ने चारों तरफ से संव्याप्त कर लिया है। आप खून बहाना बन्द करें और इस रोगी को सुख प्रदान करें ॥४॥

भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य

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