अथर्ववेद-संहिता – 1:31 – पाशमोचन सूक्त
अथर्ववेद-संहिता
॥अथ प्रथमं काण्डम्॥
[३१- पाशमोचन सूक्त]
[ ऋषि – ब्रह्मा। देवता – आशापालाक वास्तोष्पतिगण। छन्द – अनुष्टुप् , ३ विराट् त्रिष्टुप् , ४ परानुष्टुप्]
१३३. आशानामाशापालेभ्यश्चतुर्भ्यो अमृतेभ्यः।
इदं भूतस्याध्यक्षेभ्यो विधेम हविषा वयम्॥१॥
समस्त प्राणियों के अधिपति तथा अमरता से सम्पन्न इन्द्र आदि चार दिक्पालों के निमित्त हम सब हवि समर्पित करते हैं॥१॥
१३४. य आशानामाशापालाश्चत्वार स्थन देवाः।
ते नो निर्ऋत्याः पाशेभ्यो मुञ्चतांहसोअंहसः॥२॥
हे देवो! आप चारों दिशाओं के चार दिशापालक है। आप हमें हर प्रकार के पापों से बचाएँ तथा पतनोन्मुख पाशों से मुक्त करें ॥२॥
१३५. अस्रामस्त्वा हविषा यजाम्यश्लोणस्त्वा घृतेन जुहोमि।
य आशानामाशापालस्तुरीयो देवः स नः सुभूतमेह वक्षत्॥३॥
(हे कुबेर !) हम इच्छित ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए अश्रान्त होकर आपके लिए आहुति समर्पित करते हैं। हम श्लोण (लँगड़ापन) नामक रोग से रहित होकर आपके लिए घृत द्वारा आहुति समर्पित करते हैं। पूर्व वर्णित चतुर्थ दिक्पाल हमें स्वर्ण आदि सम्पत्ति प्रदान करें और हमारी आहुतियों से प्रसन्न हों॥३॥
१३६. स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु स्वस्ति गोभ्यो जगते पुरुषेभ्यः।
विश्वं सुभूतं सुविदत्रं नो अस्तु ज्योगेव दृशेम सूर्यम्॥४॥
हमारी माता तथा हमारे पिता कुशल से रहें । हमारी गौएँ, हमारे स्वजन तथा सम्पूर्ण संसार कुशल से रहें। हम सब श्रेष्ठ ऐश्वर्य तथा श्रेष्ठ ज्ञान वाले हों और सैकड़ों वर्षों तक सूर्य को देखने वाले हों, (दीर्घजीवी) हो॥४॥
भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य