November 28, 2023

अथर्ववेद-संहिता – 1:35 – दीर्घायुप्राप्ति सूक्त

अथर्ववेद-संहिता
॥अथ प्रथमं काण्डम्॥

[३५- दीर्घायुप्राप्ति सूक्त]

[ ऋषि – अथर्वा। देवता – हिरण्य, इन्द्राग्नी या विश्वेदेवा। छन्द – जगती, ४ अनुष्टुप्गर्भा चतुष्पदा त्रिष्टुप्।]

१५०. यदाबध्नन् दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमानाः।
तत् ते बध्नाम्यायुषे वर्चसे बलाय दीर्घायुत्वाय शतशारदाय॥१॥
हे आयु की कामना करने वाले मनुष्य! श्रेष्ठ विचार वाले दक्षगोत्रीय महर्षियों ने ‘शतानीक राजा’ को जो हर्ष प्रदायक सुवर्ण बाँधा था। उसी सुवर्ण को हम, आपके आयु वृद्धि के लिए, तेज और सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए तथा सौ वर्ष की दीर्घ आयु प्राप्त कराने के लिए आपको बाँधते हैं॥१॥

१५१. नैनं रक्षांसि न पिशाचाः सहन्ते देवानामोजः प्रथमजं ह्ये३तत्।
यो बिभर्ति दाक्षायणं हिरण्यं स जीवेषु कृणुते दीर्घमायुः॥२॥
सुवर्ण धारण करने वाले मनुष्य को ज्वर आदि रोग कष्ट नहीं पहुँचाते। मांस का भक्षण करने वाले असुर उसको पीड़ित नहीं कर सकते, क्योंकि यह हिरण्य इन्द्रादि देवों से पूर्व ही उत्पन्न हुआ है। जो व्यक्ति दाक्षायण सुवर्ण धारण करते हैं, वे सभी दीर्घ आयु प्राप्त करते हैं॥२॥

१५२. अपां तेजो ज्योतिरोजो बलं च वनस्पतीनामुत वीर्याणि।
इन्द्रइवेन्द्रियाण्यधि धारयामो अस्मिन् तद् दक्षमाणो बिभरद्धिरण्यम्॥३॥

हम इस मनुष्य में जल का ओजस, तेजस् , शक्ति, सामर्थ्य तथा वनस्पतियों के समस्त वीर्य स्थापित करते हैं, जिस प्रकार इन्द्र से सम्बन्धित बल इन्द्र के अन्दर विद्यमान रहता है, उसी प्रकार हम उक्त गुणों को इस व्यक्ति में स्थापित करते हैं। अत: बलवृद्धि की कामना करने वाले मनुष्य स्वर्ण धारण करें॥३॥

१५३. समानां मासामृतुभिष्ट्वा वयं संवत्सरस्य पयसा पिपर्मि।
इन्द्राग्नी विश्वे देवास्तेऽनु मन्यन्तामहृणीयमानाः॥४॥

हे समस्त धन की कामना करने वाले मनुष्य ! हम आपको समान मास वाली ऋतुओं तथा संवत्सर पर्यन्त रहने वाले गौ दुग्ध से परिपूर्ण करते हैं। इन्द्र, अग्नि तथा अन्य समस्त देव आपकी गलतियों से क्रोधित न होकर स्वर्ण धारण करने से प्राप्त फल की अनुमति प्रदान करें ॥४॥

॥ इति प्रथमं काण्डं समाप्तम्॥

भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य

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