अथर्ववेद – Atharvaveda – 2:24 – शत्रुनाशन सूक्त
अथर्ववेद संहिता
॥अथ द्वितीय काण्डम्॥
[२४- शत्रुनाशन सूक्त]
[ ऋषि – ब्रह्मा। *?देवता** – आयु। छन्द -१-४ वैराजपरा पञ्चपदा पथ्यापंक्ति, (१-२ भुरिक् पुर उष्णिक, ३-४ निवृत् पुरोदेवत्यापंक्ति), ५ चतुष्पदा बृहती, ६-८ चतुष्पदा भुरिक बृहती।]
२८३. शेरभक शेरभ पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥१॥
हे वधिको और लुटेरो! हमारी ओर प्रेरित तुम्हारे प्रहार और यातनाएँ हमारे समीप से पुन:-पुन: वापस लौट जाएँ। तुम अपने साथियों का ही भक्षण करो, जिन्होंने तुम्हें भेजा है, उनका भक्षण करो, अपने ही मांस को खाओ॥१॥
२८४. शेवृधक शेवृध पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥२॥
हे घात करने वाले शेवृधक (अपने आश्रितों को सुख देने वाले और उनके अनुचर लुटेरो) ! हमारी तरफ प्रेरित तुम्हारे प्रहार एवं यातनाएँ, असुर तथा हथियार हमारे समीप से बार-बार वापस लौट जाएँ। तुम अपने साथियों का ही भक्षण करो, भेजने वालों का भक्षण करो, अपने ही मांस का भक्षण करो॥२॥
२८५. मोकानुम्रोक पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥३॥
हे चोर तथा चोर के अनुचर लुटेरो! हमारी तरफ प्रेरित की हुई तुम्हारी यातनाएँ, असुर तथा हथियार हमारे पास से पुन:-पुन: वापस चले जाएँ। तुम्हें जिस व्यक्ति ने हमारे समीप भेजा है या जो तुम्हारे साथ हैं, तुम उन्हीं का भक्षण करो, स्वयं अपने मांस का भक्षण करो॥३॥
२८६. सर्पानुसर्प पुनर्वो यन्तु यातवः पनर्हेति: किमीदिनः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥४॥
हे सर्प तथा सर्प के अनुचर लुटेरो ! तुम्हारे द्वारा भेजी हुई यातनाएँ, असुर तथा हथियार हमारे समीप से बार-बार वापस चले जाएँ तथा आपके चोर आदि अनुचर भी वापस जाएँ। आपको जिस व्यक्ति ने हमारे समीप भेजा है या आप अपने दल-बल के साथ हमारे जिस शत्रु के समीप रहते हैं, आप उसके ही मांस को खा जाएँ॥४॥
२८७. जूर्णि पुनर्वो यन्तु यातवः पुनहेंतिः किमीदिनीः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥५॥
हे जूर्णि (शरीर को जीर्ण बनाने वाली) राक्षसी और उनकी अनुचरी लुटेरियो! तुम्हारे द्वारा भेजी हुई यातनाएँ, असुर तथा हथियार हमारे समीप से पुन: पुन: वापस चले जाएँ। तुम्हें जिस व्यक्ति ने हमारे समीप भेजा है या जो तुम्हारे साथ हैं, तुम उसके ही मांस का भक्षण करो, स्वयं अपने मांस को खाओ॥५॥
२८८. उपब्दे पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनीः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥६॥
हे उपाब्द (चिंघाड़ने वाली) लुटेरी राक्षसियो ! हमारी तरफ भेजी हुई तुम्हारी यातनाएँ, असुर तथा हथियार हमारे पास से पुन:-पुन: वापस चले जाएँ। तुम्हें जिस व्यक्ति ने हमारे समीप भेजा है या जो तुम्हारे साथ हैं, तुम उन्हीं का भक्षण करो, स्वयं अपने मांस का भक्षण करो॥६॥
२८९. अर्जुनि पुनर्यो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनीः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥७॥
हे अर्जुनि लुटेरी राक्षसियो !तुम्हारे द्वारा भेजी हुई यातनाएँ, असुर तथा अस्त्र हमारे पास से लौट जाएँ। तुम्हें जिस व्यक्ति ने हमारे पास भेजा है या जो तुम्हारे साथ है, तुम उन्हीं का भक्षण करो, स्वयं अपना मांस खाओ॥७॥
२९०. भरूजि पुनर्यो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनीः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त॥८॥
हे भरूजि (नीच प्रकृति वाली) लुटेरी राक्षसियो हमारी तरफ प्रेरित की हुई तुम्हारी यातनाएँ, असुर तथा हथियार हमारे पास से पुन-पुनः वापस चले जाएँ । तुम्हें जिस व्यक्ति ने हमारे समीप भेजा है या जो तुम्हारे साथ है, तुम उन्हीं दुष्टों का भक्षण करो, स्वयं अपने मास का भक्षण करे॥८॥
– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी