अथर्ववेद – Atharvaveda – 2:28 – दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
अथर्ववेद संहिता
॥अथ द्वितीय काण्डम्॥
[२८- दीर्घायु प्राप्ति सूक्त]
[ ऋषि – शम्भु। देवता – १ जरिमा, आयु, २ मित्रावरुण, ३ जरिमा, ४-५ द्यावापृथिवी, आयु। छन्द – १ जगती, २-४ त्रिष्टुप्, ५ भुरिक् त्रिष्टुप्।]
*?३०८. तुभ्यमेव जरिमन् वर्धतामयं मेममन्ये मृत्यवो हिंसिषुः शतं ये।**
मातेव पुत्रं प्रमना उपस्थे मित्र एनं मित्रियात् पात्वंहसः॥१॥
हे वृद्धावस्थे! आपके लिए ही यह बालक वृद्धि को प्राप्त हो और जो सैकड़ों रोग आदि रूप वाले मृत्यु योग हैं, वे इसको हिंसित न करें। हर्षित मन वाले हे मित्र देवता! जिस प्रकार माता अपने पुत्र को गोद में लेती है, उसी प्रकार आप इस बालक को मित्र – द्रोह सम्बन्धी पाप से मुक्त करें॥१॥
[व्यसन आदि मारक दोष मित्र बनकर ही या कथित मित्रों के माध्यम से ही जीवन में प्रवेश पाते हैं। प्रिय लगने वाले व्यसनादि या व्यसन सिखाने वाले मित्रों से बचना आवश्यक होता है।]
३०९. मित्र एनं वरुणो वा रिशादा जरामृत्युं कृणुतां संविदानौ।*?
तदग्निर्होता वयुनानि विद्वान् विश्वा देवानां जनिमा विवक्ति॥२॥**
मित्र तथा रिपु विनाशक वरुणदेव दोनों संयुक्त होकर इस बालक को वृद्धावस्था तक पहुँच कर मरने वाला बनाएँ। दान दाता तथा समस्त कर्मों को विधिवत् जानने वाले अग्निदेव उसके लिए दीर्घायु की प्रार्थना करें॥२॥
३१०. त्वमीशिषे पशूनां पार्थिवानां ये जाता उत वा ये जनित्राः।
मेमं प्राणो हासीन्मो अपानो मेमं मित्रा वधिषुर्मो अमित्राः॥३॥
हे अग्ने ! धरती पर पैदा हुए तथा पैदा होने वाले समस्त प्राणियों के आप स्वामी हैं । आपकी अनुकम्पा से इस बालक का, प्राण और अपान परित्याग न करें। इसको न मित्र मारें और न शत्रु॥३॥
३११. द्यौष्ट्वा पिता पृथिवी माता जरामृत्युं कृणुतां संविदाने।
यथा जीवा अदितेरुपस्थे प्राणापानाभ्यां गुपितः शतं हिमाः॥४॥
हे बालक ! तुम धरती की गोद में प्राण और अपान से संरक्षित होकर सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहो। पिता रूप द्युलोक तथा माता रूप पृथ्वी दोनों मिलकर आपको वृद्धावस्था के बाद मरने वाला बनाएँ॥४॥
३१२. इममग्न आयुषे वर्चसे नय प्रियं रेतो वरुण मित्रराजन्।
मातेवास्मा अदिते शर्म यच्छ विश्वे देवा जरदष्टिर्यथासत्॥५॥
हे अग्निदेव ! आप इस बालक को शतायु तथा तेजस् प्रदान करें। हे मित्रावरुण ! आप इस बालक को सन्तानोत्पादन में समर्थ बनाएँ । हे अदिति देवि ! आप इस बालक को माता के समान हर्ष प्रदान करें। हे विश्वेदेवो! आप सब इस बालक को सभी गुणों से सम्पन्न बनाएँ तथा दीर्घ आयुष्य प्रदान करें॥५॥
– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी