November 28, 2023

अथर्ववेद – Atharvaveda – 2:36 – पतिवेदन सूक्त

अथर्ववेद संहिता
॥अथ द्वितीय काण्डम्॥
[३६- पतिवेदन सूक्त]

[ ऋषि – पतिवेदन। देवता -१ अग्नि, २ सोम, अर्यमा, धाता,३ अग्नीषोम, ४ इन्द्र, ५ सूर्य, ६ धनपति,७ हिरण्य, भग, ८ ओषधि। छन्द – अनुष्टप.१ भुरिक् अनुष्टुप्, ३-४ त्रिष्टुप्, ८ निचृत् पुर उष्णिक्।]

३५३. आ नो अग्ने सुमतिं संभलो गमेदिमा कुमारी सह नो भगेन।
जुष्टा वरेषु समनेषु वल्गुरोषं पत्या सौभगमस्त्वस्यै॥१॥

हे अग्ने ! हमारी इस बुद्धिमती कुमारी कन्या को ऐश्वर्य के साथ सर्वगुण सम्पन्न वर प्राप्त हो। हमारी कन्या बड़ों के बीच में प्रिय तथा समान विचार वालों में मनोरम है। इसे पति के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हो ॥१॥

३५४. सोमजुष्टं ब्रह्मजुष्टमर्यम्णा संभृतं भगम्।
धातुर्देवस्य सत्येन कृणोमि पतिवेदनम्॥२॥

सोमदेव और गन्धर्वदेव द्वारा सेवित तथा अर्यमा नामक अग्नि द्वारा स्वीकृत कन्या रूप धन को हम सत्य वचन से पति द्वारा प्राप्त करने के योग्य बनाते हैं ॥२॥

३५५. इयमग्ने नारी पतिं विदेष्ट सोमो हि राजा सुभगां कृणोति।
सुवाना पुत्रान् महिषी भवाति गत्वा पतिं सुभगा वि राजतु ॥३॥

हे अग्निदेव ! यह कन्या अपने पति को प्राप्त करे और राजा सोम इसे सौभाग्यवती बनाएँ। यह कन्या अपने पति को प्राप्त करके सुशोभित हो और (वीर) पुत्रों को जन्म देती हुई घर की रानी बने॥३॥

३५६. यथाखरो मघवंश्चारुरेष प्रियो मृगाणां सुषदा बभूव।
एवा भगस्य जुष्टेयमस्तु नारी सम्प्रिया पत्याविराधयन्ती॥४॥

हे इन्द्रदेव ! जिस प्रकार गुफा का स्थान मृगों के लिए प्रिय तथा बैठने योग्य होता है, उसी प्रकार यह स्त्री अपने पति से विरोध न करती हुई तथा समस्त भोग्य वस्तुओं का सेवन करती हुई अपने पति के लिए प्रीतियुक्त हो॥४॥

३५७. भगस्य नावमा रोह पूर्णामनुपदस्वतीम्।
तयोपप्रतारय यो वरः प्रतिकाम्यः॥५॥

हे कन्ये ! आप इच्छित तथा अविनाशी ऐश्वर्य से परिपूर्ण हुई नौका पर चढ़कर, उसके द्वारा अपने अभिलषित पति के पास पहुँचें ॥५॥

३५८. आ क्रन्दय धनपते वरमामनसं कृणु।
सर्वं प्रदक्षिणं कृणु यो वरः प्रतिकाम्यः॥६॥

हे धनपते वरुणदेव ! आप इस वर के द्वारा उद्घोष कराएँ कि यह कन्या हमारी पत्नी हो। आप इस वर को कन्या के सामने बुलाकर उसके मन को कन्या की ओर प्रेरित करें तथा उसे अनुरूप व्यवहार वाला बनाएँ॥६॥

३६९. इदं हिरण्यं गुल्गुल्वयमौक्षो अथो भगः।
एते पतिभ्यस्त्वामदुः प्रतिकामाय वेत्तवे॥७॥

हे कन्ये ! ये स्वर्णिम आभूषण, गूगल की धूप तथा लेपन करने वाले औक्ष (उपलेपन द्रव्य) को अलंकार के स्वामी भग देवता आपकी पति-कामना की पूर्ति तथा आपके लाभ के लिए आपके पति को प्रदान करते हैं॥७॥

३६०. आ ते नयतु सविता नयतु पतिर्यः प्रतिकाम्यः। त्वमस्यै धेह्योषधे ॥८॥

हे ओषधे ! आप इस कन्या को पति प्रदान करें। हे कन्ये ! सवितादेव इस वर को आपके समीप लाएँ। आपका इच्छित पति आपके साथ विवाह करके आपको अपने घर ले जाए ॥८॥

॥इति द्वितीयं काण्डं समाप्तम्॥

– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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