अथर्ववेद – Atharvaveda – 3:16 – कल्याणार्थप्रार्थना सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ तृतीय काण्डम्
[१६- कल्याणार्थप्रार्थना सूक्त]
[ ऋषि – अथर्वा। देवता -१ अग्नि, इन्द्र, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार , भग, पूषा, ब्रह्मणस्पति, सोम, रुद्र, २-३,५ भग, आदित्य, ४ इन्द्र, ६ दधिक्रावा, अश्वसमूह, ७ उषा। छन्द – त्रिष्टुप. १ आर्षी जगती, ४ भुरिक् पंक्ति।]
४७२. प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पति प्रातः सोममुत रुद्रं हवामहे॥१॥
प्रभातकाल (यज्ञार्थ) हम अग्निदेव का आवाहन करते हैं। प्रभात में ही यज्ञ की सफलता के निमित्त इन्द्रदेव, मित्रावरुण, अश्विनीकुमारों, भग, पूषा, ब्रह्मणस्पति, सोम और रुद्रदेव का भी आवाहन करते हैं ॥१॥
४७३. प्रातर्जितं भगमुग्रं हवामहे वयं पुत्रमदितेयों विधर्ता।
आधश्चिद् यं मन्यमानस्तुरश्चिद् राजा चिद् यं भगं भक्षीत्याह॥२॥
हम उन भग देवता का आवाहन करते हैं, जो जगत् को धारण करने वाले, उग्रवीर एवं विजयशील हैं। वे अदिति पुत्र हैं, जिनकी स्तुति करने से दरिद्र भी धनवान हो जाता है। राजा भी उनसे धन की याचना करते हैं॥२॥
४७४. भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः।
भग प्रणो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम॥३॥
हे भगदेव ! आप वास्तविक धन हैं। शाश्वत-सत्य ही धन है। हे भगदेव ! आप हमारी स्तुति से प्रसन्न होकर इच्छित धन प्रदान करें। हे देव ! हमें गौएँ, घोड़े, पुत्रादि प्रदान कर श्रेष्ठ मानवों के समाज वाला बनाएँ॥३॥
४७५. उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्।
उतोदितौ मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम॥४॥
हे देव ! आपकी कृपा से हम भाग्यवान् बनें। दिन के प्रारम्भ और मध्य में भी हम भाग्यवान् रहें। हे धनवान् भग देवता ! हम सूर्योदय के समय समस्त देवताओं का अनुग्रह प्राप्त करें॥४॥
४७६. भग एव भगवाँ अस्तु देवस्तेना वयं भगवन्त: स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीमि स नो भग पुरएता भवेह॥५॥
भगदेव ही समृद्ध हों, उनके द्वारा हम ऐश्वर्ययुक्त बनें। हे भगदेव ! ऐसे आपको हम सब प्रकार बार-बार भजते हैं, आप हमारे अग्रणी बनें॥५॥
४७७. समध्वरायोषसो नमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय।
अर्वाचीनं वसविदं भगं मे रथमिवावा वाजिन आ वहन्तु॥६॥
उषाएँ यज्ञार्थ भली प्रकार उन्मुख हों। जैसे अश्व रथ को लाते हैं, उसी प्रकार वे हमें पवित्र पद प्रदान करने के लिए दधिक्रा (धारण करके चलने वाले) की तरह नवीन शक्तिशाली, धनज्ञ भग को हमारे लिए ले आएँ॥६॥
४७८. अश्वावतीर्गोमतीर्न उषासो वीरवती: सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीता यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥७॥
समस्त गुणों से युक्त अश्वों, गौओं, वीरों से युक्त एवं घृत का सिंचन करने वाली कल्याणकारी उषाएँ हमारे घरों को प्रकाशित करें। आप सदैव हमारा पालन करते हुए कल्याण करें॥७॥
– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य