अथर्ववेद – Atharvaveda – 3:24 – समृद्धिप्राप्ति सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ तृतीय काण्डम्
[२४- समृद्धिप्राप्ति सूक्त]
[ ऋषि – भृगु। देवता – वनस्पति अथवा प्रजापति। छन्द – अनुष्टुप, २ निचृत् पथ्यापंक्ति।]
५३४. पयस्वतीरोषधयः पयस्वन्मामकं वचः।
अथो पयस्वतीनामा भरेऽहं सहस्रशः॥१॥
समस्त ओषधियाँ (धान्य) रस (सारतत्त्व) से परिपूर्ण हों। मेरे वचन (मंत्रादि) भी (मधुर) रस से समन्वित तथा सभी के लिए ग्रहणीय हों। उन सारयुक्त ओषधियों (धान्यो) को मैं हजारों प्रकार से प्राप्त करूँ॥१॥
५३५. वेदाहं पयस्वन्तं चकार धान्यं बहु।
सम्भृत्वा नाम यो देवस्तं वयं हवामहे यो यो अयज्वनो गृहे॥२॥
ओषधियों में रस(जीवन सत्व) की स्थापना करने वाले उन देवताओं को हम भली-भाँति जानते हैं, वे धान्यादि को बढ़ाने वाले हैं। जो अयाज्ञिक (कृपण) मनुष्यों के गृहों में हैं, उन ‘संभृत्वा, (इस नाम वाले अथवा बिखरे धन का संचय करने वाले) देवों को हम आवाहित करते हैं॥२॥
५३६. इमा याः पञ्च प्रदिशो मानवीः पञ्च कृष्टयः।
वृष्टे शापं नदीरिवेह स्फाति समावहान्॥३॥
पूर्व आदि पाँचों दिशाएँ तथा मन से उत्पन्न होने वाले पाँच प्रकार के (वर्णों के) मनुष्य इस स्थान को उसी प्रकार समृद्ध करें, जिस प्रकार वर्षा के जल से उफनती हुई नदियाँ जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचा देती हैं॥३॥
५३७. उदुत्सं शतधारं सहस्रधारमक्षितम्।एवास्माकेदं धान्यं सहस्रधारमक्षितम्॥४॥
जिस प्रकार सैकड़ों-हजारों धाराओं से प्रवाहित होने के बाद भी जल का आदि स्रोत अक्षय बना रहता है, उसी प्रकार हमारा धन-धान्य भी अनेक धाराओं (रूपों) से खर्च होने के बाद भी अक्षय बना रहे॥४॥
५३८. शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर।कृतस्य कार्यस्य चेह स्फाति समावह॥५॥
हे मनष्यो ! आप सैकडों हाथों वाले होकर धन एकत्रित करें तथा हजारों हाथों वाले होकर उसका दान कर दें। इस तरह आप अपने किये हुए तथा किये जाने वाले कर्मों की वृद्धि करें॥५॥
५३९. तिस्रो मात्रा गन्धर्वाणां चतस्रो गृहपत्न्याः।
तासां या स्फातिमत्तमा तया त्वाभि मृशामसि॥६॥
गन्धर्वो की सुख-समृद्धि का मूल आधार जो तीन कलाएँ हैं तथा गन्धर्व-पत्नियों की समृद्धि का आधार जो चार कलाएँ हैं, उनमें सर्वश्रेष्ठ परम समृद्धि प्रदान करने वाली कला से हम धान्य को भली-भाँति सुनियोजित करते हैं। हे धान्य ! कला के प्रभाव से आप वृद्धि को प्राप्त करें ॥६॥
५४०. उपोहश्च समूहश्च क्षत्तारौ ते प्रजापते।ताविहा वहतां स्फाति बहुं भूमानमक्षितम्॥७॥
हे प्रजापते ! धान्य को समीप लाने वाले ‘उपोह’ नामक देव तथा प्राप्त धन की अभिवृद्धि करने वाले ‘समूह’ नामक देव आपके सारथि हैं। आप उन दोनों देवताओं को अक्षय धन की प्राप्ति के लिए यहाँ बुलाएँ ॥७॥
– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य