November 28, 2023

अथर्ववेद – Atharvaveda – 3:27 – शत्रुनिवारण सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ तृतीय काण्डम्
[२७- शत्रुनिवारण सूक्त]

[ ऋषि – अथर्वा। देवता– रुद्र १ प्राची दिशा, अग्नि, असित, आदित्यगण, २ दक्षिण दिशा, इन्द्र, तिरश्चिराजी, पितरगण, ३ प्रतीची दिशा, वरुण, पृदाकु, अन्न, ४ उदीची दिशा, सोम, स्वज, अशनि, ५ ध्रुव दिशा, विष्णु, कल्माषग्रीव, वीरुध,६ ऊर्ध्व दिशा, बृहस्पति, श्वित्र (श्वेतरोग) वर्षा (वृष्टिजल)। छन्द – पञ्चपदा ककुम्मती गर्भाष्टि, २ पञ्चपदा ककुम्मतीगर्भा अत्यष्टि, ५ पञ्चपदा ककुम्मतीगर्भा भुरिक् अष्टि।]

५५३. प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥१॥

पूर्व दिशा हमारे ऊपर अनुग्रह करने वाली हो। पूर्व दिशा के अधिपति अग्निदेव हैं, रक्षक ‘असित’ (बन्धनरहित) हैं, ‘बाण’ प्रहारक आदित्य हैं। इन (दिशाओं के) अधिपतियों, रक्षकों तथा बाणों को हमारा नमन है। ऐसे सभी (हितैषियों) को हमारा नमन है । जो रिपु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन रिपुओं को हम आपके जबड़े (या दण्ड व्यवस्था) में डालते हैं ॥१॥

५५४. दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥२॥

दक्षिण दिशा के अधिपति इन्द्रदेव उसके रक्षक ‘तिरश्चिराजी’ (मर्यादा में रहने वाले) तथा ‘बाण’ पितृदेव हैं। उन अधिपतियों, रक्षकों तथा बाणों को हमारा नमन है। ऐसे सभी हितैषियों को हमारा नमन है। जो रिपु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते है, उन रिपुओं को आपके नियन्त्रण में डालते हैं ॥२॥

५५५. प्रतीची दिग् वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नमिषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥३॥

पश्चिम दिशा के स्वामी वरुणदेव हैं, उनके रक्षक ‘पृदाकु’ (सर्पादि) हैं तथा अन्न उसके बाण हैं । इन सबको हमारा नमन है। जो रिपु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन रिपुओं को हम आपके जबड़े में डालते हैं ॥३॥

५५६. उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरिषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥४॥

उत्तर दिशा के अधिपति सोम हैं और उनके रक्षक ‘स्वज’ (स्वयं जन्मने वाले) हैं तथा अशनि ही बाण हैं। इन सबको हमारा नमन है। जो रिपु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन रिपुओं को हम आपके नियन्त्रण में डालते हैं ॥४॥

५५७. ध्रुवा दिग् विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥५॥

अधो दिशा-(ध्रुव) के स्वामी ‘विष्णु’ हैं और उनके रक्षक ‘कल्माषग्रीव’ (चितकबरे रंग वाले) हैं तथा रिपु विनाशक ओषधियाँ ही बाण हैं। इन सबको हमारा नमन है। यह नमन इन सबको हर्षित करे। जो रिपु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, इन रिपुओं को हम आपके दण्ड विधान में डालते हैं ॥५॥

५५८. ऊर्ध्वा दिग बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षमिषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥६॥

ऊर्ध्व दिशा के स्वामी बृहस्पतिदेव हैं, उनके रक्षक ‘श्वित्र’ (पवित्र) हैं तथा वृष्टि जल ही रिपु विनाशक बाण है। उन सबको हमारा नमन है। यह नमन उन सबको हर्षित करे। जो रिपु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन रिपुओं को हम आपके नियन्त्रण में डालते हैं॥६॥

– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!