अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:10 – शङ्खमणि सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ चतुर्थ काण्डम्
[१० – शङ्खमणि सूक्त]
[ ऋषि -अथर्वा। देवता – शङ्खमणि, कृशन। छन्द – अनुष्टुप्, ६ पथ्यापंक्ति, ७ पञ्चपदा परानुष्टुप् शक्वरी।]
६६०. वाताज्जातो अन्तरिक्षाद् विद्युतो ज्योतिषस्परि।
स नो हिरण्यजाः शङ्खः कृशन: पात्वंहसः॥१॥
वायु, अन्तरिक्ष, विद्युत् और सूर्य आदि ज्योतियों से उत्पन्न तथा स्वर्ण से विनिर्मित तेजस्वी शंख, पाप से हमारी सुरक्षा करे ॥१॥
६६१. यो अग्रतो रोचनानां समुद्रादधि जज्ञिषे।
शङ्खेन हत्वा रक्षांस्यत्रिणो वि षहामहे॥२॥
हे शंख ! आप प्रकाशमान नक्षत्रों के सामने विद्यमान समुद्र में पैदा होते हैं, ऐसे ज्योतिर्मय आप से असुरों को विनष्ट करके हम पिशाचों को पराभूत करते हैं ॥२॥
६६२. शङ्खेनामीवाममति शङ्खेनोत सदान्वाः।
शङ्खो नो विश्वभेषजः कृशनः पात्वंहसः॥३॥
शंख के द्वारा हम समस्त रोगों तथा विवेकहीनता को दूर करते हैं। इसके द्वारा हम सदैव पीड़ा देने वाली अलक्ष्मी को भी तिरस्कृत करते हैं। विघ्नों को दूर करने वाला यह तेजस्वी शंख, पापों से हमारी सुरक्षा करे॥३॥
६६३. दिवि जातः समुद्रजः सिन्धुतस्पर्याभृतः।
स नो हिरण्यजाः शङ्ख-आयुष्यतरणो मणिः॥४॥
पहले धुलोक में उत्पन्न हुआ, समुद्र में उत्पन्न हुआ, नदियों से एकत्रित किया हुआ हिरण्य (दिव्य तेज) से निर्मित यह शंख मणि, हमारे आयुष्य की वृद्धि करने वाली हो॥४॥
६६४. समुद्राज्जातो मणिर्वृत्राज्जातो दिवाकरः।
सो अस्मान्त्सर्वतः पात हेत्या देवासुरेभ्यः॥५॥
समुद्र से पैदा हुआ यह (शंख) मणि तथा मेघों से उत्पन्न सूर्य सदृश यह देवताओं एवं असुरों के अस्त्रों से हमारी रक्षा करे॥५॥
६६५. हिरण्यानामेकोऽसि सोमात् त्वमधि जज्ञिषे।
रथे त्वमसि दर्शत इषुधौ रोचनस्त्वं प्र ण आयूंषि तारिषत्॥६॥
(हे शंख मणे !) आप तेजस्वियों में से एक हैं। आप सोम से उत्पन्न हुए हैं। रथों में आप देखने योग्य होते हैं और बाणों के आश्रय स्थान तूणीर में चमकते हुए प्रतीत होते हैं, ऐसे आप हमारे आयुष्य की वृद्धि करें ॥६॥
६६६. देवानामस्थि कृशनं बभूव तदात्मन्वच्चरत्यप्स्व१न्तः।
तत् ते बध्नाम्यायुषे वर्चसे बलाय दीर्घायुत्वाय शतशारदाय कार्शनस्त्वाभि रक्षतु ॥७॥
देवों की अस्थिरूप यह मोती बना है। यह आत्मतत्त्व की तरह जल के बीच विचरण करता है। (हे व्यक्ति विशेष !) ऐसे उस (शंखमणि) को तेजस्विता, बल तथा सौ वर्ष वाले आयुष्य के लिए (तुम्हे) बाँधता हूँ। यह सभी प्रकार तुम्हारी रक्षा करें ॥७॥
[हड्डियाँ चूने के योग (कैल्शियम कम्पाउण्ड्स) से बनती हैं। शंख एवं सीप भी उसीप्रकार के योगों से बनते हैं, इसी तथ्य को अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ऋषि उसे देवों की अस्थि कहते हैं।]
– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य