अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:13 – रोग निवारण सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ चतुर्थ काण्डम्
[१३ – रोग निवारण सूक्त]
[ ऋषि – शन्ताति। देवता – चन्द्रमा, विश्वेदेवा, (१ देवगण, २-३ वात, ४ मरुद्गण, ६-७ हस्त।) छन्द – अनुष्टुप् ।]
६८६. उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः।
उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः॥१॥
हे देवगण ! हम पतितों को बार-बार ऊपर उठाएँ। हे देवो! हम अपराधियों के अपराध-कर्मों का निवारण करें। हे देवो! हमारा संरक्षण करते हुए आप हमें दीर्घायु बनाएँ॥१॥
६८७. द्वाविमौ वातौ वात आ सिन्धोरा परावतः।
दक्षं ते अन्य आवातु व्य१न्यो वातु यद् रपः॥२॥
ये दो वायु, एक समुद्र पर्यन्त और दूसरे समुद्र से सुदूर प्रवाहित होते हैं। उन दोनों में से एक तो आपको (स्तोता को) बल प्रदान करें और दूसरे आपके पापों को विनष्ट करें॥२॥
६८८. आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद् रपः।
त्वं हि विश्वभेषज देवानां दूत ईयसे॥३॥
हे वायुदेव ! आप व्याधियों का निवारण करने वाली कल्याणकारी ओषधि को लेकर आएँ। जो अहितकर पाप (मल) हैं, उन्हें यहाँ से बहाकर ले जाएँ। आप संसार के लिए ओषधिरूप, कल्याणकारी, देवदूत बनकर सर्वत्र संचार करते हैं॥३॥
६८९.त्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्तां मरुतां गणाः।
त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत्॥४॥
इस लोक में समस्त देवगण हमें संरक्षण प्रदान करें। मरुद्गण और समस्त प्राणी हमारी रक्षा करें। वे हमारे शरीर के रोगों और पापों का निवारण करें॥४॥
६९०. आ त्वागमं शन्तातिभिरथो अरिष्टतातिभिः।
दक्षं त उग्रमाभारिषं परा यक्ष्मं सवामि ते॥५॥
हे स्तोताओ ! आपके लिए सुख-शान्ति प्रदायक और अहिंसक संरक्षण साधनों के साथ हमारा आगमन हुआ है। आपके लिए मंगलमय शक्तियों को भी हमने धारण किया है। अस्तु, इस समय तुम्हारे सम्पूर्ण रोगों का निवारण करता हूँ॥५॥
६९१. अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः।
अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः॥६॥
यह हमारा हाथ सौभाग्ययुक्त है, अति सौभाग्यशाली यह हाथ सबके लिए सभी रोगों का निवारण-कर्ता है। यह हाथ शुभ और कल्याणकारी है॥६॥
६९२. हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिह्वा वाचः पुरोगवी।
अनामयित्नुभ्यां हस्ताभ्यां ताभ्यां त्वाभि मृशामसि॥७॥
मन्त्रोच्चारण करते समय जैसे वाणी के साथ जिह्वा गति करती है। वैसे ही दस अंगुलियों वाले दोनों हाथों से आपका स्पर्श करते हुए आपको रोगों से मुक्त करते हैं ॥७॥
– भाष्यकार वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य