अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:28 – पापमोचन सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ चतुर्थ काण्डम्
[२८ – पापमोचन सूक्त]
[ ऋषि – मृगार अथवा अथर्वा। देवता – भव-शर्व अथवा रुद्र। छन्द – त्रिष्टुप्, १ अति जागतगर्भा भुरिक् त्रिष्टुप्।]
८०९. भवाशवौँ मन्वे वां तस्य वित्तं ययोर्वामिदं प्रदिशि यद् विरोचते।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥१॥
हे भव एवं शर्व (जगत् को उत्पन्न और उसका विनाश करने वाले) देवो ! हम आपकी महिमा को जानते हैं। यह सम्पूर्ण जगत् आपकी सामर्थ्य से आलोकित होता है। आप समस्त मनुष्यों तथा पशुओं के स्वामी हैं। आप दोनों हमें समस्त पापों से मुक्त करें ॥१॥
८१०. ययोरभ्यध्व उत यद् दूरे चिद् यौ विदिताविषुभृतामसिष्ठौ।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥२॥
पास तथा दूर के क्षेत्र में जो कुछ भी है, वह उन्हीं दोनों के नियन्त्रण में है। वे धनुष पर बाणों का संधान करने तथा चलाने में विख्यात हैं। वे मनुष्यों तथा पशुओं के ईश्वर हमें समस्त पापों से मुक्त करें॥२॥
८११. सहस्राक्षौ वृत्रहणा हुवेऽहं दूरेगव्यूती स्तुवन्नेम्युग्रौ।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥३॥
हजार आँखों वाले, रिपुओं का संहार करने वाले तथा दूर तक विचरण करने वाले प्रचण्ड भव और शर्व देवों की हम प्रार्थना करते हुए उनका आवाहन करते हैं। वे मनुष्यों और पशुओं को समस्त पापों से मुक्त करें॥३॥
८१२. यावारेभाथे बहु साकमग्रे प्रचेदस्राष्ट्रमभिभां जनेषु।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥४॥
आप दोनों ने सृष्टि के प्रारम्भ में अनेकों कार्य साथ-साथ किये। आपने ही मनुष्यों में प्रतिभा उत्पन्न की। हे समस्त मनुष्यों तथा पशुओं के ईश्वर! आप हमें समस्त पापों से मुक्त करें॥४॥
८१३. ययोर्वधान्नापपद्यते कश्चनान्तर्देवेषूत मानुषेषु।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥५॥
जिन भव और शर्व के संहारक हथियारों से देवों तथा मनुष्यों में से कोई भी बच नहीं सकता तथा जो मनुष्यों और पशुओं के स्वामी हैं, वे देव हमें समस्त पापों से मुक्त करें॥५॥
८१४. यः कृत्याकृन्मूलकृद् यातुधानो नि तस्मिन् धनं वज्रमुग्रौ।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥६॥
जो शत्रु , कृत्या प्रयोग से विनिर्मित पिशाचों के द्वारा अनिष्ट करते हैं तथा जो राक्षस, वंशवृद्धि की मूल, हमारी सन्तानों को विनष्ट करते हैं, हे प्रचण्ड वीर ! आप उन पर अपने वज्र से प्रहार करें। समस्त मनुष्यों तथा पशुओं के स्वामी आप हमें समस्त पापों से मुक्त करें॥६॥
८१५. अधि नो ब्रूतं पृतनासूग्रौ सं वज्रेण सृजतं यः किमीदी।
स्तौमि भवाशवौं नाथितो जोहवीमि तौ नो मञ्चतमंहसः॥७॥
हे उग्रवीर भव-शर्व देवो ! आप हमारे हित में उपदेश करें तथा जो स्वार्थी हैं, उन पर प्रहार करें। हम आपको स्वामी मानकर पुकारते हैं, आपकी स्तुति करते हैं, आप हमें पापों से बचाएँ ॥७॥
– वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य