अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:33 – पापनाशन सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ चतुर्थ काण्डम्
[33 – पापनाशन सूक्त]
ऋषि – ब्रह्मा, देवता – अग्नि, छन्द – गायत्री
८४५. अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घमग्ने॑ शुशु॒ग्ध्या र॒यिम्।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥१॥
है अग्ने! आप हमारे पापों को भस्म करें। हमारे चारों ओर ऐश्वर्य प्रकाशित करें तथा पापों को विनष्ट करें।१।
८४६. सु॒क्षे॒त्रि॒या सु॑गातु॒या व॑सू॒या च॑ यजामहे ।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥२॥
हे अग्निदेव! उत्तम क्षेत्र, उत्तम मार्ग और उत्तम धन की इच्छा से हम आपका यजन करते हैं। आप हमारे पापों को विनष्ट करें।२।
८४७. प्र यद् भन्दि॑ष्ठ एषां॒ प्रास्माका॑सश्च सू॒रयः॑ ।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥३॥
हे अग्निदेव! हम सभी साधक वीरता और बुद्धिपूर्वक आपकी विशिष्ट प्रकार से भक्ति करते हैं। आप हमारे पापों को विनष्ट करें।३।
८४८. प्र यत् ते॑ अग्ने सू॒रयो॒ जाये॑महि॒ प्र ते॑ व॒यम्।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥४॥
हे अग्निदेव! हम सभी और ये विद्वद्गण आपकी उपासना से आपके सदृश प्रकाशवान हुए हैं, अत: आप हमारे पापों को विनष्ट करें।४।
८४९. प्र यद॒ग्नेः सह॑स्वतो वि॒श्वतो॒ यन्ति॑ भा॒नवः॑ ।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥५॥
इन बल सम्पन्न अग्निदेव की देदीप्यमान किरणें सर्वत्र फैल रही हैं, ऐसे वे हमारे पापों को विनष्ट करें।५।
८५०. त्वं हि वि॑श्वतोमुख वि॒श्वतः॑ परि॒भूरसि॑ ।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥६॥
हे बल-सम्पन्न अग्निदेव! आप निश्चय ही सभी ओर व्याप्त होने वाले हैं, आप हमारे पापों को विनष्ट करें।६।
८५१. द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय ।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥७॥
हे सर्वतोमुखी अग्ने! आप नौका के सदृश शत्रुओं से हमें पार ले जाएं। आप हमारे पापों को विनष्ट करें।७।
८५२. स नः॒ सिन्धु॑मिव ना॒वाति॑ पर्ष स्व॒स्तये॑ ।
अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम्॥८॥
हे अग्निदेव! नौका द्वारा नदी के पार ले जाने के समान आप हिंसक शत्रुओं से हमें पार ले जाएं। आप हमारे पापों को विनष्ट करें।८।
भाष्यकार – वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पँ. श्रीराम शर्मा आचार्य