September 26, 2023

अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:39 – सन्नति सूक्त

अथर्ववेद संहिता
अथ चतुर्थ काण्डम्

[३९- सन्नति सूक्त]

[ ऋषि – अङ्गिरा। देवता – सन्नति (१-२ पृथिवी, अग्नि, ३-४ वायु, अन्तरिक्ष, ५-६ दिव, आदित्य, ७-८ दिशाएँ, चन्द्रमा, ९-१० ब्रह्मा, जातवेदा (अग्नि)। छन्द – त्रिपदा महाबृहती, २,४,६,८ संस्तार पंक्ति, ९-१० त्रिष्टुप्।]

८९७. पृथिव्यामग्नये समनमन्त्स आर्ध्नोत्।
यथा पृथिव्यामग्नये समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु॥१॥

धरती पर अग्निदेव के सम्मुख समस्त प्राणी नमन करते हैं। वे अग्निदेव भी विनम्र हए भूतों से समृद्ध होते हैं। जिस प्रकार धरती पर अग्निदेव के सम्मुख सब विनम्र होते हैं, उसी प्रकार हमें सम्मान देने के लिए हमारे सामने उपस्थित हुए लोग विनम्र हों॥१॥

८९८. पृथिवी धेनुस्तस्या अग्निर्वत्सः। सा मेऽग्निना वत्सेनेषमूर्ज कामं दुहाम्।
आयुः प्रथमं प्रजां पोषं रयिं स्वाहा॥२॥

पृथ्वी गौ है और अग्नि उसका बछड़ा है। वह धरती अग्निरूपी बछड़े से (हमें) अन्न, बल, अपरिमित आयु, सन्तान, पुष्टि और सम्पत्ति प्रदान करे। हम उसे हवि समर्पित करते हैं॥२॥

८९९. अन्तरिक्षे वायवे समनमन्त्स आर्ध्नोत्।
यथान्तरिक्षे वायवे समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु॥३॥

अन्तरिक्ष में अधिष्ठाता देवता रूप में स्थित वायुदेव के सम्मुख सब विनम्र होते हैं और वे वायुदेव भी उनसे वृद्धि को प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार अन्तरिक्ष में वायुदेव के सम्मुख सब विनम्र होते हैं, उसी प्रकार हमें सम्मान देने के लिए हमारे सम्मुख उपस्थित हुए लोग भी विनम्र हो॥३॥

९००. अन्तरिक्षं धेनुस्तस्या वायुर्वत्सः। सा मे वायुना वत्सेनेषमूजँ कामं दुहाम्।
आयुः प्रथमं प्रजा पोषं रयिं स्वाहा॥४॥

अभिलषित फल प्रदान करने के कारण अन्तरिक्ष गौ के समान है और वायुदेव उसके बछड़े के समान हैं। वह अन्तरिक्ष वायुरूपी अपने बछड़े से (हमें) अन्न, बल, अपरिमित आयु, सन्तान, पुष्टि और धन प्रदान करे। हम उसे हवि समर्पित करते हैं॥४॥

९०१. दिव्यादित्याय समनमन्त्स आर्ध्नोत्।
यथा दिव्यादित्याय समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु॥५॥

द्युलोक में अधिपति रूप में स्थित सूर्यदेव के सम्मुख समस्त द्युलोक निवासी विनम्र होते हैं और वे सूर्यदेव भी उनके द्वारा वृद्धि को प्राप्त करते हैं। जिस प्रकार द्युलोक में सूर्यदेव के सम्मुख सब विनम्र होते हैं, उसी प्रकार हमें सम्मान देने के लिए हमारे सम्मुख उपस्थित लोग विनम्र हों॥५॥

९०२. द्यौर्धेनुस्तस्या आदित्यो वत्सः। सा म आदित्येन वत्सेनेषमूर्ज कामं दुहाम्।
आयुः प्रथम प्रजा पोषं रयिं स्वाहा॥६॥

इच्छित फल प्रदान करने के कारण द्युलोक गौ के समान है और सूर्यदेव उसके बछड़े के समान हैं। वह द्युलोक सूर्यरूपी अपने बछड़े के द्वारा (हमे) अन्न-बल, अपरिमित आयु, सन्तान, पुष्टि और धन प्रदान करे, हम उसे हवि समर्पित करते हैं॥६॥

९०३. दिक्षु चन्द्राय समनमन्त्स आर्ध्नोत्।
यथा दिक्षु चन्द्राय समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु॥७॥

पूर्व आदि दिशाओं में अधिष्ठाता देवता रूप में स्थित चन्द्रमा के सम्मुख समस्त प्रजाएँ विनम्र होती हैं और चन्द्रलोक भी उनके द्वारा वृद्धि को प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार दिशाओं में चन्द्रमा के सम्मुख सब विनम्र होते हैं, उसी प्रकार हमें सम्मान देने के लिए, हमारे सम्मुख उपस्थित लोग विनम्र हों ॥७॥

९०४. दिशो धेनवस्तासां चन्द्रो वत्सः। ता मे चन्द्रेण वत्सेनेषमूर्ज कामं दुहाम्।
आयुः प्रथमं प्रजां पोषं रयिं स्वाहा॥८॥

दिशाएँ गौ हैं और चन्द्रमा उनका बछड़ा है। वे दिशाएँ चन्द्रमारूपी बछड़े के द्वारा(हमें) अन्न, बल,अपरिमित आयु, सन्तान, पुष्टि और धन प्रदान करें, हम उन्हें हवि समर्पित करते हैं॥८॥

९०५. अग्नावग्निश्चरति प्रविष्ट ऋषीणां पुत्रो अभिशस्तिपा उ।
नमस्कारेण नमसा ते जुहोमि मा देवानां मिथुया कर्म भागम्॥९॥

लौकिक अंगिरा सम्बन्धी अग्नि में मन्त्र बल द्वारा देवरूप अग्नि, प्रविष्ट होकर निवास करते हैं। वे ‘चक्षु’ और ‘अंगिरा’ आदि ऋषियों के पुत्र हैं। वे मिथ्यापवाद से बचाने वाले हैं। हम उन्हें नमनपूर्वक हवि प्रदान करते हैं, देवों के हविर्भाग को मिथ्या नहीं करते॥९॥

९०६. हृदा पूतं मनसा जातवेदो विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
सप्तास्यानि तव जातवेदस्तेभ्यो जुहोमि स जुषस्व हव्यम्॥१०॥

हे समस्त उत्पन्न प्राणियों को जानने वाले अग्निदेव ! आप समस्त कर्मों के ज्ञाता हैं। हे जातवेदा अग्ने ! आपके जो सात मुख हैं, उनके लिए हम मन और अन्त:करण द्वारा पवित्र हुए हवि को समर्पित करते हैं, आप उस हवि को ग्रहण करें ॥१०॥

– वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य

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