अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:29 – पापमोचन सूक्त
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ८१६. मन्वे वां मित्रावरुणावृतावृधौ सचेतसौ द्रुह्वणो यौ नुदेथे।प्रसत्यावानमवथो भरेषु तौ नो मञ्चतमंहसः॥१॥हे मित्र और वरुणदेव !...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ८१६. मन्वे वां मित्रावरुणावृतावृधौ सचेतसौ द्रुह्वणो यौ नुदेथे।प्रसत्यावानमवथो भरेषु तौ नो मञ्चतमंहसः॥१॥हे मित्र और वरुणदेव !...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ८०९. भवाशवौँ मन्वे वां तस्य वित्तं ययोर्वामिदं प्रदिशि यद् विरोचते।यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥१॥हे भव...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ८०२. मरुतां मन्वे अधि मे बुवन्तु प्रेमं वाजं वाजसाते अवन्तु।आशूनिव सुयमानह्व ऊतये ते नो मुञ्चन्त्वंहसः॥१॥हम मरुतों...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ७९५. मन्वे वां द्यावापृथिवी सुभोजसौ सचेतसौ ये अप्रथेथाममिता योजनानि।प्रतिष्ठे ह्यभवतं वसूनां ते नो मुञ्चतमंहसः॥१॥हे द्यावा-पृथिवि !...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ७८८. वायोः सवितुर्विदथानि मन्महे यावात्मन्वद् विशथो यौ च रक्षथः।यौ विश्वस्य परिभू बभूवथुस्तौ नो मुञ्चतमंहसः॥१॥वायु और सूर्य...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ७८१. इन्द्रस्य मन्महे शश्वदिदस्य मन्महे वृत्रघ्न स्तोमा उप मेम आगुः।यो दाशषः सुकृतो हवमेति स नो मञ्चत्वंहसः॥१॥...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ७७४. अग्नेर्मन्वे प्रथमस्य प्रचेतसः पाञ्चजन्यस्य बहुधा यमिन्धते।विशोविश: प्रविशिवांसमीमहे स नो मुञ्चत्वंहसः॥१॥ बहुधा जिन्हें ईंधन द्वारा प्रदीप्त...