अथर्ववेद – Atharvaveda – 4:14 – स्वर्ज्योति प्राप्ति सूक्त
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६९३. अजो ह्य१ग्नेरजनिष्ट शोकात् सो अपश्यज्जनितारमग्रे।तेन देवा देवतामग्र आयन् तेन रोहान् रुरुहुर्मेध्यासः॥१॥ अग्नि ही 'अज' है।...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६९३. अजो ह्य१ग्नेरजनिष्ट शोकात् सो अपश्यज्जनितारमग्रे।तेन देवा देवतामग्र आयन् तेन रोहान् रुरुहुर्मेध्यासः॥१॥ अग्नि ही 'अज' है।...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६८६. उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः।उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः॥१॥ हे देवगण ! हम पतितों...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् इस सूक्त में टूटे अंगों को जोड़ने एवं जले-कटे घावों को भरने के लिए 'रोहिणी' नामक...
अथर्ववेद संहिताचतुर्थ काण्डम् अनड्वान् प्राणों को भी कहा गया अथर्व० ११.६.१०)। यह भाव इस सूक्त के संदर्भ में भी सटीक...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६६०. वाताज्जातो अन्तरिक्षाद् विद्युतो ज्योतिषस्परि।स नो हिरण्यजाः शङ्खः कृशन: पात्वंहसः॥१॥ वायु, अन्तरिक्ष, विद्युत् और सूर्य आदि...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६५०. एहि जीवं त्रायमाणं पर्वतस्यास्यक्ष्यम्।विश्वेभिर्देवैर्दत्तं परिधिर्जीवनाय कम्॥१॥ हे अञ्जन मणे ! आप प्राणधारियों की सुरक्षा करने...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६३६. वारिदं वारयातै वरणावत्यामधि।तत्रामृतस्यासिक्तं तेना ते वारये विषम्॥१॥ वरणावती ओषधि में स्थित रस हमारे विष को...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६२८. ब्राह्मणो जज्ञे प्रथमो दशशीर्षो दशास्यः।स सोमं प्रथमः पपौ स चकारारसं विषम्॥१॥ पहले दस शीर्ष तथा...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् ६२१. सहस्रशृङ्गो वृषभो यः समुद्रादुदाचरत्।तेना सहस्येना वयं नि जनान्स्वापयामसि॥१॥ सहस्र श्रृंगों (रश्मियो) वाला वृषभ (वर्षा करने...
अथर्ववेद संहिताअथ चतुर्थ काण्डम् इस सूक्त में बल-वीर्यवर्द्धक ओषधि का उल्लेख है। आचार्य सायण ने इसे कपित्थ से जोड़ा है।...